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विविध पूजन संग्रह
॥ १३४ ॥
ध्वजा चढ़ाना केसर का छांटना करना बाद में कलश एवं दण्ड को पुष्प माला पहनाना । अबिल, गुलाल, कुमकुम दशे दिशाओं में उडाना । नीचे आकर बड़ी शान्ति बोलनी । पूर्व दिशा सन्मुख खड़े होकर हाथ जोड़कर नीचे लिखा श्लोक बोलना -
जिनेन्द्र भक्त्या जिन भक्तिभाजं, येषां च पूजा बलिपुष्पधूपैः । ग्रहागता ये प्रतिकुलतां च, ते सानुकूला वरदा भवंतु ॥१॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं । पूजाविधिं न जानामि, प्रसीद परमेश्वर ॥२॥ आज्ञाहिनं क्रियाहिनं, मंत्रहिनं च यत्कृतम् ।
तत्सर्वं कृपया देवाः, क्षमन्तु परमेश्वराः ॥३॥ खमासमण देकर अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं कहना । बाद में मंदिर जी में आकर शेष पूजा पढ़ाना। आरती, मंगलदीपक एवं शांति कलश करके चैत्यवंदन करना, बाद में खमासमण देकर अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं कहना ।
वार्षिक ध्वजारोहण
॥१३४॥
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