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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि (६) अष्टमंगलविसर्जन-अष्टमंगलना पाटला आगळ ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (७) घंटाकर्ण के माणिभद्र वीरनुं विसर्जन-घंटाकर्णना पाटला आगळ ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। (बीजे स्थले एम पण छ के-ॐ नम आदितेभ्यः सवाहनेभ्यः सपरिकरेभ्यः सायुधेभ्यः सर्वोपद्रवाद् रक्षत रक्षत स्वस्थानं गच्छत गच्छत स्वाहा । ए प्रमाणे सर्वत्र) पछी विसर्जन मुद्रापूर्वक हाथ जोडी आ प्रमाणे बोलवू - जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, येषां च पूजाबलिपुष्पधूपान् । ग्रहा गता ये प्रतिकूलताञ्च, ते सानुकूला वरदा भवन्तु ॥१॥ देवदेवार्चनार्थाय( Vतु )पुराऽऽहूता हिये सुराः । ते विधायार्हतां पूजां, यान्तु सर्वे यथागतम् ।। या पाति शासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी ।सा ह्यभिप्रेतसिद्ध्यर्थं, भूयाच्छासनदेवता ।३। ॥ ९५ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥९५ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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