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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३२ ॥ Jain Education International ८. अक्षतं, ताम्बूलं, द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. ( १ ) ॐ काँ काँ कैं टः टः टः छत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमः स्वाहा । ए मंत्रन गोमेदकनी अथवा अकलबेरनी नवकारवाळी एक गणवी. (८) ए ज मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेऽम्बरे । श्री मल्लिपार्श्वयोर्नाम्ना, केतो ! शान्ति श्रियं कुरु ॥ ॥ इति केतुपूजा ९ ॥ (४) पछी एक थाळमां पंचपट्टा वस्त्र, श्रीफळ १, रूपयो १, सर्व जातना फूलो, फळो अने चोखा तथा पंचरत्ननी पोटली, मींढळ, नाडाछडी लई ऊभा थई नीचे प्रमाणे ग्रहशान्तिस्तोत्र भणवुं. ग्रहशान्तिस्तोत्रम् । जगद्गुरुं नमस्कृत्य श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम् । ग्रहशान्तिं प्रवक्ष्यामि, भव्यानां सुखहेतवे ।१ । १. लोकानां (पाठा.) ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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