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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥२२॥ चन्द्राय ॐ ही द्रा द्री चन्द्राय नमः स्वाहा । ए मंत्रनी स्फटिकनी नवकारवाळी एक गणवी. ८. ए ज मंत्रे फूल वासचोखा अने पाणी पसलीमा राखी त्रण वार अर्ध्य देवो. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी :- चन्द्रप्रभजिनेन्द्रस्य नाम्ना तारागणाधिप! प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ॥१॥ ॥ इति चन्द्रपूजा २ ॥ ३. अथ भौमपूजा । (१) ॐ नमो भूमिपुत्राय भूभृकुटिलनेत्राय वक्रवदनाय द्रः सः मङ्गलाय स्वाहा । ए मंत्र चोखा वासफूले वधावीए. (२) रतांजलि अथवा केसर वडे आलेख करवो. ॐ नमो भोमाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्र वडे आह्वान (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण मुद्रादि पूर्ववत् । (६) एज मंत्रे अष्टप्रकारी पूजा. अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥२२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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