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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ९२ ॥ Jain Education International पछी इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थं० कही एक लोगस्सनो काउ० करी पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी. ते आ यस्याःक्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ पछी भुवणदेवयाए करेमि काउ० अन्नत्थ० कही एक लोगस्सनो काउ० पारी, नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी. ज्ञानादिगुणयुतानां नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् । पछी शान्तिदेवतायै करेमि काउ० अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउ० करी पारी, नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी. श्री चतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूया - च्छ्रीमती शान्तिदेवता ।१ । श्री क्षुद्रोपद्रवोपशमावणी करेमि काउंस्सग्गं अन्नत्थ० कही एक नवकार, एक उवसग्गहरं, एक लोगस्स ए त्रणेनो काउस्सग्ग करी, पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी, ते आसर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये वैयावृत्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु न: ।१ । पछी एक नवकार कहेवो । For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ९२ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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