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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
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(५) “ ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय स्वाहा” आ मंत्र केसरथी अधेडा अथवा सरेडानी लेखनथी कुंभ उपर लखवो. (६) कुंभमध्ये केसरनो स्वस्तिक (साथिओ ) करवो ने धूप देवो. पछी कुसुमांजलिए कुंभने वधाववो अने कंकुना छघंटा नाखवा. (७) कुंभनी अंदर चोखा, सोपारी, रूपियो अने पंचरत्ननी पोटली स्थापन करवी. (८) ऊभा थईने नवकार अथवा मोटी शांति भणतां अबोटजळनी अखंडधाराए कुम्भ परिपूर्ण भरवो. (९) कुम्भने कंठे नागरवेलना चार पान सवळा करवा ने उपर श्रीफळ मूकवं. (१०) लीलो अथवा रातो सवागजनो रेशमी ककडो ढांकीने (मींढळ, मरडासींगी, धरो, डाभ अने नाडु) ग्रीवासूत्र बांधवं. (११) पछी केसर अने पुष्पथी पूजा करवी, सोनारूपाना वरख छापवा, फूलनो हार पहेराववो. (१२) जे स्थळे कुम्भ स्थापवो होय त्यां कंकुनो साथियो करी चोखा-सोपारी पूरी उपर व्रीहि (डांगर ) शेर सवानो साथियो करवो. (बिंब जे स्थाने होय तेनी जमणी बाजुमां अथवा जे स्थळे बिंब स्थापवानां होय तेनी जमणी बाजुमां कुम्भ स्थापना करवी ) (१३) कुम्भ कुमारिका अथवा सौभाग्यवती स्त्रीने माथे मूकावी दहेरासर फरती ( शक्य न होय तो त्रिगडा फरती ) त्रण प्रदक्षिणा धूप दीप साथे वाजतेगाजते थाली वगाडतां देवी, (१४) पछी ज्यां साथिओ छे त्यां 'ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा' ए मंत्र सात वार गणीने श्वास स्थिर ( कुंभक) राखीने कुम्भने स्थिर स्थापना करवो. (१५) कुम्भने स्थानके बाजुमां अखंड दीप राखवो. त्रिकाळ धूप करवो. (१६) गुरुमहाराजश्री पासे वासक्षेप कराववो उपरना मंत्रपूर्वक बीजाए पण वासंक्षेपपूजा करवी. (१७) पछी नीचेनुं काव्य बोलवापूर्वक त्रण वार कुसुमांजलि करवी
(काव्यम् - शार्दूलविक्रीडित वृत्तम् )
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अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
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