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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २ ॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥८॥ (१) अथ कुम्भस्थापनविधिः ॥ शुभ कार्यनी शरुआतमां कुम्भस्थापना करवामां आवे छे. कुम्भस्थापना करवानी होय ते | दिवसे कुम्भचक्र अवश्य जोइए. कुम्भस्थापनानो विधि आ प्रमाण छे - (१) प्रथम सर्व सामग्री एकठी करवी. सामग्री सर्व शुद्ध करवी. (२) कुम्भ स्थापना करनार अने करावनारे देहादि शुद्धि यतनापूर्वक जलादिथी अने मंत्रादिथी करवी. (३) एक माटीनो कुंभ काळा डाघ वगरनो अखंडित लेवो, तेने रंगावीने उपरना भागमां-कांठानी नीचेना भागमां-अष्टमंगल चीतराववा. (तांबानो अथवा चांदी-रूपानो अष्टमंगल चीतरेलो कुंभ पण उपयोगमा लई शकाय. छे) (४) कुंभने धोई-धूपीने कंठे नाडाछडी-ग्रीवासूत्र बांधीए. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २ ॥ www.ininelibrary.org For Personal & P Use Only Jain Education international
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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