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________________ विविध पूजन संग्रह ॥३४॥ (संनिधानम्) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वेऽपि मे भवत सन्निहिताः प्रमोदात् ॥३॥ वषट् ॥ संनिधापनी मुद्राए संन्निधान करवू । (संनिरोधनम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, स्थातव्यमेव यजनावधिरत्र सर्वैः ॥४॥ संनिरोधनी मुद्राए सन्निरोध करवो । 4 (अवगुंठनम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । | देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वे भवन्तु परदेहभृतामदृश्याः ॥५॥ फट् ॥ - अवगुंठनी मुद्राए अवगुंठन करवू । (पूजनम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, पूजां प्रतीच्छत मया विहितां यथावत् ॥६॥ पूजनमुद्राए अंजली करी पूजन करवू । |श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३४॥ in Education For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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