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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
॥५॥
मूकवी. मीढळ-मरडाशिंगी बांधीने १०८ अथवा २७ तारनी दीवेट मूकीने नीचे प्रमाणे घृतमंत्र भणतां भणतां सौभाग्यवती स्त्री पासे घृत पूरावq.
॥ घृतपूरणमंत्र ॥ ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति परं जैनदृष्टिसम्पर्कात् । तत्संयुक्तः प्रदीपः पातु सदा भावदुःखेभ्यः स्वाहा ॥ आ मंत्र त्रण वार कही घृत पूरावीए । (३) पछी दीप प्रगटाववो, तेनो मंत्र
श्री
अष्टोत्तरी व ॐ अहँ पञ्चज्ञानमहाज्योतिर्मयाय ध्वान्तघातिने ।
शान्तिस्नानादि द्योतनाय प्रतिमाया दीपो भूयात् सदाऽहत ॥
विधि आ मंत्र त्रण वार कही दीप प्रगटाववो. (४) पछी कुम्भनी जमणी बाजुए ज्यां दीपने स्थापवो छे त्यां कंकुनो साथियो करी तेना उपर पलाळेली माटीनुं स्थान करीए. तेना उपर दीप । स्थापी, नीचे प्रमाणे मंत्रपाठपूर्वक वासक्षेप करी अग्निशुद्धि करीए
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५
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