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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
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ॐ अग्नयोऽग्निकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां, निर्व्यथाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु, सद्गगतयः सन्तु, न मे संघट्टनहिंसाऽर्हदर्चने ।
आ मंत्र त्रण वार भणी वासक्षेपथी दीप तथा अग्नि शुद्ध करीए. (५) दीप, कुंभ तथा प्रभुनी सन्मुख आवे ते प्रमाणे कुंभनी जमणी बाजुए स्थापन करवो. जीवजंतुनी जयणा जळवाय ए प्रमाणे उपर ढांकण राखq. घृत पूरवानी अने दीवेट बराबर करवानी काळजी राखवी. महोत्सव पूर्ण थाय त्यां सुधी दीपक अखंड रहवो जोइए.
इति दीपस्थापनविधिः ॥ (३) अथ जुवारा वाववानो विधि ॥ (१) जुवारीया चार (वांसना जवारीय चार-सात सात खानांवाळा) शरावलां चार(कुंभस्थापना अथवा शांतिस्नात्र होय तो चार) आठ (-उपरनी साथे ध्वजदंड पूजन होय तो आठ) बार-(साथे साथे प्रतिष्ठ-बिम्बप्रवेश आदि होय तो बार) काळा डाघ विनानां लेवा. (२) तेने
' श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
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