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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २८ ॥ Jain Education International स्वाहा । स्फटिकनी अथवा रूपानी नवकारवाळी एक गणवी. (८) उपरना मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवा. (९) बे हाथ जोडी प्रार्थना करवी (ॐ) पुष्पदन्तजिनेन्द्रस्य, नाम्ना दैत्यगणार्चित!, प्रसन्नो भव शान्तिं च रक्षां कुरु जयश्रियम् । ॥ इति शुक्रपूजा ६ ॥ ७ अथ शनिपूजा । ( १ ) ॐ शनैश्चराय ॐ क्रौं ह्रीं क्रौंडाय नमः स्वाहा । ए मंत्रे चोखा वासफूल वडे वधावीए. (२) चुवो, कस्तूरी मिश्र करी आलेखन करवु. ( ३ ) ॐ नमः शनैश्चराय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्र वडे आह्वान करवुं. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन करवुं. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण करवुं. (६) उपरोक्त मंत्रे अष्टप्रकारीपूजा करीए. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । कंकु. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । बोलसरी अथवा For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २८ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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