SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥५०॥ श्रावक ग्रह पट्टक अने दिक्पालपट्ठकनी वच्चे ऊभो रही, बे हाथ जोडी कोशमुद्रा वडे नीचे प्रमाणे प्रार्थना करे - ॐ भो भो इन्द्रादयो दिक्पालाः आदित्यादयो ग्रहाश्च स्वस्वदिशि स्थिता विघ्नशान्तिकरा भवत भवत स्वाहा । (४) मुहूर्तथी पूर्वे दिक्पाल-ग्रहप्रतिष्ठा होय तो पहेलां दहेरासरे त्रण दिवस सुधी पूजीए. (५) मुहूर्त दिवसे प्रभाते वासे पूजीए. प्रतिमा पासे स्थापीए. पछी उक्त विधिए पूजीए. ॥ इति दशदिक्पालपूजनविधिः ॥ ९. अथ अष्टमंगलपूजनविधिः । (१) अष्टमंगलना पट्टकने यक्षकर्दम वडे आलेख करवो. (२) दरेक मंगल उपर पान, चोखा, सोपारी, सवा रुपीयो मूकीए. (३) नीचे प्रमाणे मंगलसूक्तो बोलीए. प्रथम नीचेना सूक्ते कुसुमांजलि करीए - मङ्गलं श्रीमदर्हन्तो, मङ्गलं जिनशासनम् । मङ्गलं सकलः संघो, मङ्गलं पूजका अमी ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥५०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy