Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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देवताओं द्वारा परिवृत होकर देवताओं द्वारा ही संचालित नौ स्वर्गकमलों पर पैर रखते हुए सुबह के समय भगवान् ने पूर्व द्वार से समवसरण में प्रवेश किया और चैत्य वृक्ष को तीन प्रदक्षिणा दी। तदुपरान्त 'नमो तित्थाय' कहकर मंच पर रखे सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ गए। भगवान् की शक्ति से व्यंतर देवों ने प्रभ की तीन मूत्तियों का निर्माण कर अन्य तीनों ओर रत्न-जड़ित सिंहासन पर स्थापित कर दी। भगवान् के पीछे भामंडल था। सम्मुख इन्द्रध्वज और आकाश में देव-दुदुभि बज रही थी।
(श्लोक ३३१-३३५) ____साधुगण ने पूर्व द्वार से प्रवेश कर अर्हत को प्रणाम किया और बैठ गए। साध्वियाँ और वैमानिक देव-पत्नियाँ दक्षिण पूर्व कोण में जाकर खड़ी हो गयीं । उत्तर द्वार से प्रवेश कर वैमानिक देव, मनुष्य और देवियाँ अर्हत् की वन्दनाकर यथाक्रम उत्तर-पूर्व के कोण में जाकर खड़ी हो गयीं। पश्चिम द्वार से प्रवेश कर भवनपति, ज्योतिष्क और व्यंतर देव अर्हत् की वन्दना कर यथाक्रम उत्तरपश्चिम कोण में जाकर खड़े हो गए। भवनपति, ज्योतिष्क और व्यंतर देवों को देवियाँ, दक्षिण द्वार से प्रवेश कर अर्हत् प्रभु की वन्दना की ओर दक्षिण-पश्चिम कोण में जाकर खड़ी हो गयीं । इस प्रकार प्रथम प्राकार के मध्य चतुर्विध संघ, द्वितीय प्राकार के मध्य जीव-जन्तु और तृतीय प्राकार के मध्य वाहन रूप में आगत पशु अवस्थित हो गए।
__(श्लोक ३३६-३४०) शक्र भगवान् को वन्दन कर विनम्रतापूर्वक भक्तिभाव से करबद्ध बने निम्न स्तुति करने लगे :
_ 'भगवन, आप आयाचित सहायकारी हैं, अकारण कारुणिक, प्रार्थित न होने पर भी कृपा करने वाले, अज्ञानी के लिए भी आत्मीय तुल्य हैं। मैं आपकी शरण ग्रहण करता हूं, मुझे शरण में लीजिए। आपका मन तैलाक्त नहीं होने पर भी स्निग्ध है, वाणी माजित न होने पर भी मधुर है, चारित्र बिना धुला होने पर भी कलंकहीन है । आपने इच्छामात्र से कर्म के वक्र कंटकों को नष्ट कर डाला-जबकि आप दुर्दम योद्धा नहीं हैं, मात्र श्रमण हैं, शांत और समभावापन्न हैं। आपको नमस्कार ! आप जन्म से मुक्त हैं, व्याधि से मुक्त हैं, नरक के कारण राग-द्वेष से मुक्त और पवित्र हैं। मैं