Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कषाय से आक्रान्त होने पर अशुभ कर्म का बन्ध होता है। श्रु तज्ञान के आधार पर कहे गए सत्य वचनों से शुभ कर्म का बन्ध होता है; किन्तु इसके विपरीत वचन से अशुभ कर्म का । सुसंयमित शरीर से कृत काम से शुभ कर्म का बन्ध होता है; किन्तु आरम्भ और हिंसादि सावध कर्म में नियोजित शरीर से अशुभ कर्म का बन्ध होता है। विषय, कषाय, योग, प्रमाद, अविरति मिथ्यात्व और आत एवं रौद्र ध्यान अशुभ कर्म के बन्ध का कारण है। (श्लोक ७८-८४)
'जिस भी प्रकार से आश्रवित क्यों न हो आत्मा में प्रवेशकारी कर्म ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के हैं।' (श्लोक ८५)
___ 'ज्ञान और दर्शन का विषय, ज्ञानी और दर्शनकारी के प्रति व ज्ञान और दर्शन उत्पन्न करने के कारणों में विघ्न डालना, निव करना, गर्दा करना, अशातना करना, घात करना, ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म-बन्ध का कारण है।' (श्लोक ८६)
___ 'सम्यक ज्ञान हीन देवों की आराधना, गुरु की सेवा, सुपात्र दान, दया, क्षमा, सराग संयम, देश विरति, अकाम निर्जरा, शौच शाता वेदनीय कर्म-बन्ध का कारण है। स्वयं के लिए दूसरे के लिए या उभय के लिए शोक, वध, ताप और पश्चात्ताप उत्पन्न करनाकराना अशाता वेदनीय कर्म-बन्ध का कारण है।' श्लोक ८७-८९)
'मुनि, शास्त्र, संघ, धर्म और समस्त देवों का अवर्णवाद करना अर्थात् निन्दा करना, मिथ्यात्व का तीव्र परिणाम करना, केवली और सिद्धों का निह्नव करना (उनका देवत्व स्वीकार नहीं करना, विपरीत बोलना और उनके गुणों का अपलाप करना) धार्मिक मनुष्य को दोषी करना, उनकी निन्दा करना, उन्मार्ग का उपदेश देना, अनर्थ का आग्रह करना, असंयमी का आदर, सत्कार और पूजा करना, बिना विचारे काम करना, गुरु आदि की अवज्ञा करना इत्यादि कार्य से दर्शन मोहनीय कर्म का आश्रव होता है।'
'कषायों के उदय से आत्मा में तीव्र परिणाम होना चारित्र मोहनीय कर्मबन्ध का कारण होता है।
(श्लोक ९०-९३) 'किसी का मजाक करना, सकाम उपहास, कारण-अकारण हास्य, वाचालता व दीनता व्यक्त करने की प्रवृत्ति हास्य मोहनीय कर्मबन्ध का कारण होता है।'
(श्लोक ९४) 'देश-विदेश में भ्रमण कर नए-नए दृश्यों को देखने की इच्छा.