Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अधिकार कैसे है ? अब तो अन्यत्र भी उनका आधिपत्य क्षणस्थायी होगा । यदि उनके जीवन की इच्छा और धान्य-भक्षण पूरा हो गया है तो वे स्वयं आएँ और स्वयंप्रभा को ले जाएँ। तुम दूत हो, तुम्हारी हत्या नहीं करूंगा। जाओ, यह स्थान तुरन्त परित्याग करो। यदि वे आएँगे तो मैं निश्चय ही उनकी हत्या करूंगा।'
(श्लोक ५१०-५१५) वासुदेव से यह सुनकर अंकुशाहत की तरह द्रुतगति से वह दूत स्वदेश लौट गया और अश्वग्रीव को समस्त कथा कह सुनाई। यह सुनते ही अश्वनीव के नेत्र लाल हो उठे । केश श्मश्रू कुञ्चित हो गए। भ्र -कुञ्चन से उनका ललाट भयंकर लगने लगा। देह काँपने लगी। वे दाँतों से ओष्ठ काटते हुए बोले - 'ज्वलनजटी को मतिभ्रम हो गया है। मेरे सम्मुख वह है सामान्य कीट, जैसे सूर्य के सम्मुख खद्योत होता है। यह क्या आभिजात्य है जो उसने मेरी अवहेलना कर अपनी कन्या को उसे दान की जो अपनी ही कन्या से उत्पन्न किया हुआ पुत्र है। ज्वलनजटी मूर्ख है, वह मृत्यु की कामना कर रहा है। दूसरा मूर्ख है प्रजापति और तीसरा मूर्ख है अपनी बहन के गर्भ से उत्पन्न हुआ। उसका पुत्र त्रिपृष्ठ । उसका भाई जो कि उसके पिता का पुत्र व साला है चतुर्थ मूर्ख है । क्या यह निर्लज्जता नहीं है कि शृगाल-सा वह सिंह से युद्ध करना चाहता है ? जाओ, हवा जिस प्रकार मेघ को उड़ा देती है, बाघ जिस प्रकार हरिण यूथ को छिन्न-भिन्न करता है, सिंह जैसे हस्तियों को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है उसी प्रकार उसे विनष्ट कर दो।'
(श्लोक ५१६-५२३) जल देखकर प्यासा व्यक्ति जैसे आनन्दित हो जाता है उसी प्रकार विद्याधरगण जिनके हाथ खुजला रहे थे प्रभु के आदेश से आनन्दित हुए। बाहबली वे भुजाएँ ठोककर आकाश को विदीर्ण कर डाले ऐसे शब्दों से युद्ध की प्रतिज्ञा करते हुए बोले-'आशा करता हं युद्धक्षेत्र में क्या शत्र, क्या मित्र कोई मेरे सामने नहीं टिक सकेगा।' ऐसा कहकर वे एक दूसरे को अतिक्रम कर जाने लगे। कोई अश्व को कशाघात करने लगा, कोई अंकुश द्वारा हाथियों को आहत । कोई वलदों को पैर मारकर चलाने लगा, कोई ऊँट पर यष्टि से प्रहार करने लगा। कोई तलवार नचाने लगा, कोई ढाल,