Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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२००] के निकुञ्ज-से यौवन को प्राप्त हुए । देवों ने उन नर-रत्नों को विजय सूचक अस्त्र-रत्न दिए । अग्रज को हल आदि एवं अनुज को सारंग आदि ।
(श्लोक १११-११५) जब बलराम और वासुदेव सम्पूर्ण रूप से समर्थ और शक्तिमान हए तब कलहप्रिय नारद एक दिन प्रतिवासुदेव मधु के गह गए। रीतिविद् मधु ने उनका समादर किया और प्रणाम करते हुए बोला-'स्वागत महामुनि, स्वागत ! पुण्य योग से ही आज आपसे साक्षात्कार हुआ है। भरतार्द्ध के समस्त राजा मेरे अधीन हैं यहां तक कि मगध, वरदाम और प्रभासपति आदि देव भी मेरे आज्ञाकारी हैं। अतः हे नारद मुनि, आप निर्भय होकर आपके आने का कारण मुझसे कहें। कोई भी वस्तु या स्थान आपको अभिप्रेत हों तो कहें, मैं वह आपको देने में समर्थ हूं।'
(श्लोक ११६-११९) ___ नारद बोले-'मैं किसी वस्तु या स्थान प्राप्त के लिए यहां नहीं आया हूं। मैं तो यहां आया हूं केवल विनोद के लिए। लोग आपको मिथ्या ही अर्द्धभरत का अधीश्वर कहते हैं। चाटुकारों की तरह आपका गुणगान करते हैं । सत्यवादी अब हैं कहां ? बुद्धिमान व्यक्ति लोभी भिक्षार्थियों द्वारा प्रशंसित होकर लज्जित ही होते हैं एवं निश्चय ही उनका विश्वास नहीं करते । पराक्रमियों में भी महापराक्रमी हैं और महानों में भी महत् । पृथ्वी तो बहु रत्न संभवा
(श्लोक १२०-१२३) ___ शभी वृक्ष के मध्य जैसे अग्नि अन्तनिहित होती है उसी प्रकार अन्तनिहित क्रोध से ओष्ठ दंशन कर मधू नारद से बोले-'इस भरतार्द्ध में गंगा से कौन सी नदी बड़ी है, वैताढय से कौन सा पर्वत बड़ा है और मुझसे और कौन बलशाली है ? बताइए उसका नाम । शरभ के सम्मुख ही हस्ति-शावक की तरह उसमें कितना बल है यह मैं आपको दिखा दूंगा। कोई मद्यप या उन्मादी ने आपका अपमान किया है जो कि उसकी मृत्यु की कामना आप प्रशंसा के बहाने चाह रहे हैं।
(श्लोक १२४-१२७) नारद बोले-'मैं मद्यप एवं उन्मादी के पास तो जाता ही नहीं अतः उनके द्वारा मेरे अपमान का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अभी आपने कहा अर्द्धभरत के अधीश्वर हैं, आगे से ऐसा मत कहिएगा। कारण, यह कथन हास्यास्पद है । राजन्, क्या आपने