Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 243
________________ २३४] अनुभव में आते हैं इस भाँति अकृत्रिम मुक्ति सुख का अनुभव करते हैं, जिनमें कुटिलता रूपी कंटक हो, जो मायाचारी हैं, जो दूसरों का अनिष्ट करने में प्रवृत्त हैं, ऐसे व्यक्ति स्वप्न में भी सुख शान्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? समस्त विद्या प्राप्त करने के बाद भी, समस्त कलाओं को अधिगत करने के पश्चात् भी, शिशू सुलभ सरलता भाग्यशाली को ही मिलती है। अज्ञ शिशु की सरलता भी जब सबको प्रिय लगती है तो फिर जो शास्त्रों के अध्ययन में निरत हैं उनकी सरलता सबको प्रिय लगेगी इसमें आश्चर्य ही क्या है? सरलता स्वाभाविक है, कुटिलता कृत्रिम है। इसलिए स्वभाव धर्म को छोड़ कर कृत्रिम धर्म कौन ग्रहण करेगा? (श्लोक २९२-३०६) 'छल, पिशुनता, वक्रोक्ति और प्रवंचना में निरत मनुष्यों में शुद्ध स्वर्ग के समान निर्मल और निर्विकार मनुष्यों का साक्षात् भाग्य से ही होता है। जो समस्त गणधर श्रुत समुद्र पारगामी हैं वे तीर्थंकरों की वाणो को सरलतापूर्वक सुनते हैं। जो सरलतापूर्वक अपने दोषों की आलोचना करता है वह समस्त दुष्कर्मों को क्षय कर देता है। जो मायाचारपूर्वक दोषों की आलोचना करता है वह अपने सामान्य से दुष्कर्म को खूब बड़ा बना लेता है। जो मन, वचन, काया से कुटिल है वह कभी भी मुक्त नहीं हो सकता। मुक्त वही होता है जो मन वचन काया से सरल है। इस प्रकार मायाचारी कुटिल मनुष्यों को उग्रकर्म की कुटिलता का विचार कर बुद्धिमान मुक्ति प्राप्त करने के लिए सरलता का आश्रय लेते हैं। (श्लोक ३०७-३११) 'लोभ समस्त दोषों का घर है, गुण भक्षणकारी राक्षस है, व्यसन रूपी लता का मूल है और समस्त प्रकार की अर्थ प्राप्ति में बाधक है। निर्धन व्यक्ति एक सौ रुपए चाहता है, जिसके पास एक सौ है वह हजार चाहता है, जिसके पास हजार है वह एक लाख चाहता है, जिसके पास एक लाख है वह एक कोटि चाहता है । कोटिपति राज्याधिपति होना चाहता है, जो राज्याधिपति है वह चक्रवर्ती होना चाहता है। इतने पर भी लोभ की समाप्ति नहीं होती । वह देवता होना चाहता है, देवों में भी इन्द्र । इन्द्र होने पर भी लोभ की शान्ति कहाँ है । लोभ तो घास की तरह उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है। समस्त पापों में जैसे हिंसा, समस्त कर्मों में मिथ्यात्व,

Loading...

Page Navigation
1 ... 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278