Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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_ विद्याधरराज ने धनुष झकाकर एक तीर निक्षेप किया। आर्यपुत्र ने एक तीर से अशनिवेग के धनुष का चिल्ला काट डाला मानो उसके जीवन का ही अन्त कर डाला हो। अशनिवेग जब हाथ मैं खड़ग लेकर आर्यपुत्र की ओर दौड़ा तब उन्होंने अर्द्धयश की भाँति उसका आधा हाथ ही काट डाला । अत्यधिक क्रोधित होकर एक हाथ कट जाने पर भी पर वह एक दाँत टूटे हस्ती की तरह या एक दाँत खोए सूअर की तरह, उनकी ओर बढ़ने लगा। जब वह होठ दबाकर आर्यपुर पर खड्ग का वार करने जा ही रहा था कि उन्होंने विद्यालब्ध चक्र द्वारा अशनिवेग का मस्तक छेदन कर डाला। (श्लोक २७८ २८१)
'अब अशनिवेग की राज्यश्री पूर्णतः आर्यपुत्र की आश्रित हो गयी। कारण श्री साहसियों का ही आश्रय ग्रहण करती है । चन्द्रवेग, भानुवेग और अन्य विद्याधर सहित आर्यपुत्र वैताढ्य पर्वत पर गए । जिन विद्याधर राजाओं को उन्होंने युद्ध में पराजित किया था उनके द्वारा वे विद्याधर पति के रूप में अभिषिक्त हुए । शक जैसे नन्दीश्वर द्वीप में अढाई महोत्सव करता है उसी प्रकार जिनकी महत्ता अतुलनीय है ऐसे आपके मित्र ने वहाँ अष्टाह्निका महोत्सव किया।
(श्लोक २८२-२८५) _ 'एक दिन विद्याधरों के चडामणि रूप मेरे पिता जी ने आर्यपुत्र से कहा-'बहत दिन पूर्व मैंने महाशक्तिधर और ज्ञान में समुद्रतुल्य एक मुनि का दर्शन किया और उन्हें वकुलमति आदि मेरी एक सौ कन्याओं के भावी पति के विषय में पूछा। प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा- 'चतुर्थ चक्री सनत्कुमार आपकी इन एक सौ कन्याओं के पति होंगे। सौभाग्यवश आप उसी समय यहां आए जबकि मैं सोच रहा था कि आपको कहाँ खोगा और कैसे आपको इनसे विवाह करने को कहंगा? देव, अब आप अनुग्रह कर उन्हें ग्रहण करें कारण, महान पुरुषों के सम्मुख की गयी प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं होती, मुनि वाक्य भी व्यर्थ नहीं होता।'
(श्लोक २८६-२९०) ___याचक के लिए चिन्तामणि तुल्य आपके मित्र ने मेरे पिता द्वारा इस प्रकार अनुरूद्ध होकर मेरे सहित एक सौ कन्याओं से विवाह किया। तब से विद्याधर कन्याओं से परिवृत होकर आपके