Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 272
________________ [२६३ राज्याभिषेक किया गया था उसी प्रकार देवों ने पवित्र जल से सनत्कुमार को चक्रवर्ती पद पर अभिषिक्त किया । तुम्बुरु आदि गायकों ने मंगल गान किया । देवों ने मृदंगादि वाद्य बजाए । रम्भा, उर्वशी आदि ने नृत्य किया, गन्धर्वों ने नाना प्रकार के कौतुक दिखाए । स्नानाभिक समाप्त कर देवों ने उन्हें दिव्य वस्त्र, गन्ध, अलंकार और माल्य आदि प्रदान किए। हस्ती रत्न को सुगन्धित केशर से चर्चित कर उसकी पीठ पर सनत्कुमार को बैठा कर कुबेर ने हस्तिनापुर में उनका प्रवेश करवाया । अपनी नगरी की तरह ही हस्तिनापुर को धन सम्पन्न कर कुबेर ने चक्रवर्ती से विदा लो । ( श्लोक ३२५ - ३३२) चक्रवर्ती रूप लता की क्यारी के रूप में उनका अभिषेक मुकुटबद्ध राजाओं और सामन्तों द्वारा भी अनुष्ठित हुआ । इस अभिषेक समारोह के कारण हस्तिनापुर को बारह वर्षों के लिए दण्ड, कर आदि से मुक्त कर दिया गया । इन्द्र से वैभव सम्पन्न सनत्कुमार पिता की तरह प्रजा को पुत्रवत् पालन करने लगे । उन्हें करादि द्वारा पीड़ित नहीं किया समकक्ष त्रैलोक्य में कोई नहीं था में कोई नहीं था । शक्ति में उसी भाँति जिस प्रकार उनके रूप में भी त्रैलोक्य एक दिन शक्र सौधर्म कल्प में अपने रत्न कर सौदामिनी नामक नाटक देख रहे थे । ईशान कल्प से संगम नामक एक देव आया । उसकी कान्ति ( श्लोक ३३३-३३६) सिंहासन पर बैठ उसी समय वहाँ और रूप ने वहाँ अवस्थित समस्त देवों के को म्लान कर दिया । यह देख कर वे सब उसके चले जाने पर देवों ने शक को इस रूप रूप और कान्ति विस्मित हो गए । और कान्ति का कारण पूछा। शक ने प्रत्युत्तर में कहा - 'पूर्व जन्म में उसने आयंबिल वर्द्धमान तप किया था उसी कारण यह रूप और कान्ति अर्जित की है ।' देवों ने पुनः पूछा - 'उसके जैसे रूप और कान्ति त्रिलोक में और किसी के हैं ?' इन्द्र ने उत्तर दिया – 'उससे भी अधिक रूप और कान्ति कुरुकुल के अलंकार चक्रवर्ती सनत्कुमार को प्राप्त हैं | उन-सा रूप और कान्ति अन्यत्र किसी मनुष्य या देवों में भी नहीं है ।' ( श्लोक ३३७-३४३) विजय और वैजयन्त नामक दो देवों को इन्द्र की इस

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