Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
२६४]
बात पर विश्वास नहीं हुआ। वे पृथ्वी पर उतरे। सनत्कुमार का सौन्दर्य देखने के लिए ब्राह्मण वेश में वे राजप्रासाद के द्वार पर जहाँ द्वारपाल खड़े थे पहुंचे। सनत्कुमार उस समय स्नान के लिए बैठे थे अतः देह के समस्त रत्नाभरण उतार कर उबटन का लेप कर दिया गया था। द्वार-रक्षक ने ब्राह्मणों का आगमन निवेदित किया। सनत्कुमार ने उन्हें वहाँ ले आने को कहा । वहाँ जाकर जब उन्होंने सनत्कुमार को देखा तो विस्मित होकर मस्तक नीचा किए सोचने लगे--
इनका ललाट अष्टमी के चन्द्र से भी सुन्दर है। आकर्णविस्तृत नेत्र नील पद्म को भी लज्जित कर रहा है। ओष्ठ पके विम्ब से भी अधिक रक्तिम है। कान मुक्ता सीप-से हैं। कण्ठ पांचजन्य शंख को भी पराजित कर रहा है । भुजाएं गजराज की सूड का स्मरण करवा रही हैं। वक्ष देश ने सुवर्ण शिला के सौन्दर्य को चुराया हैं। कटिदेश सिंह शिशु-सा क्षीण है। और अधिक क्या कहें ? उनका देह-सौन्दर्य भाषा में पकड़ा नहीं जा सकता। उनकी देह का लावण्य ऐसा निर्बाध है कि चन्द्र किरण द्वारा आवृत नक्षत्रलोक की तरह उवटन की तो बात ही मन में नहीं आती। इन्द्र ने जैसा कहा था ये वैसे ही हैं। सत्य ही महामना कभी झूठ नहीं बोलते। (श्लोक ३४४-३५४)
सनत्कुमार ने उनसे पूछा, 'हे द्विजोत्तमगण, आप यहाँ क्यों आए हैं ?' वे बोले, 'हे नरशार्दूल, आपका रूप स्वर्ग मर्त्य सर्वत्र विख्यात है और सभी के लिए विस्मयजनक है। इसी रूप की चर्चा सुन कर स्वनेत्रों से इस रूप को देखने हम यहाँ आए हैं। लोग आपके रूप के विषय में जैसा कहते हैं उसी प्रकार यह आश्चर्यजनक सुन्दर है।'
(श्लोक ३५५-३५८) सनत्कुमार के अधरों पर हास्य बिखर गया। वे गर्व से बोले-'हे द्विजोत्तमगण, उबटन लेपित देह में वह सौन्दर्य कहाँ ? जब तक मैं स्नान न कर ल तब तक आप अपेक्षा करें और मेरा अंगराग लिप्त स्वर्णाभरण मण्डित देह-सौन्दर्य देखें।
__ (श्लोक ३५९-३६१) सूर्य जैसे आकाश को अलंकृत करता है उसी प्रकार स्नान के पश्चात् स्वर्णाभरणों से भूषित होकर चक्री ने अपने प्रताप