Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 267
________________ २५८ ] जानती । यह भी नहीं जानती मेरा भी क्या होगा ?" ( श्लोक २३-२४४) 'आर्यपुत्र बोले- 'हे भीरु, भय मत करो। मैं ही कुरुवंशी सनत्कुमार हूं जिसे तुमने स्वप्न में देखा था ।' तब वह बोली, 'मैं कृत - कृत्य हुई कारण बहुत दिनों पश्चात् भाग्य के द्वारा स्वप्न साकार होने की भाँति आप मेरे सम्मुख खड़े हैं । हे देव, ईश्वर को धन्यवाद ।' ( श्लोक २४५ - २४६ ) 'वे लोग जब इस प्रकार वार्तालाप कर रहे थे तभी अशनिवेग का पुत्र वज्रवेग विद्याधर क्रोध से लाल नेत्र किए वहाँ आ पहुंचा । वज्रवेग आर्यपुत्र को उठाकर आकाश की ओर उड़ चला । ' हा देव, मैं दुर्देव द्वारा नष्ट हुई' कहती हुई वह मूच्छित होकर गिर पड़ी । आर्यपुत्र ने क्रुद्ध होकर वज्रवेग को पत्थर से कठोर हस्त आघात से मशक की भांति मार डाला । तदुपरान्त अक्षत देह लिए चन्द्र की तरह उसके नीले नयन-कमलों को आनन्द देने के लिए पुनः सुनन्दा के पास लौट गए । उन्होंने सुनन्दा को होश दिलाया और वहीं उससे विवाह कर लिया कारण ज्योतिषियों ने कहा था कि यह कन्या रमणीरत्न है । ( श्लोक २४७-२५२) 'अपने भाई की मृत्यु का संवाद पाकर क्रुद्ध सन्ध्यावली उसी क्षण वहाँ आ पहुंची । आर्यपुत्र को देखकर और नैमित्तिकों द्वारा की गई यह भविष्य वाणी स्मरण कर कि तुम्हारा भ्रातृहन्ता ही तुम्हारा पति होगा वह शान्त हो गई । अपनी इच्छा ही सबके लिए बलवान होती है । आर्यपुत्र को पतिरूप में चाह कर वह स्वयं द्वितीय जयश्री की तरह उनके पास गई। सुनन्दा की सानन्द सम्मति पाकर आर्यपुत्र ने उस अनुरागवती से भी गान्धर्व विवाह कर लिया । ( श्लोक २५३-२५६) 'उसी समय दो विद्याधर अस्त्र-शस्त्रादि तथा रथ सहित वहाँ आए और आर्यपुत्र को बोले- 'वज्रवेग के पिता विद्याधर राजा अशनिवेग ने गरुड़ जैसे सर्प की हत्या करता है उसी प्रकार उसकी हत्या कर दी हैं सुनकर अपनी सेना से आकाश को आच्छादित कर दिक् हस्ती से भी अधिक बलवान, क्रोधरूप लवण - समुद्र की तरह आपके साथ युद्ध करने आ रहा है । हम आपके साले हैं, हमारे पिता चन्द्रवेग और भानुवेग द्वारा प्रेरित होकर आपकी सहायता के लिए

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