Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२५७ और रत्नजड़ित शय्या पर सुखपूर्वक सो गए । निद्रित अवस्था में उस यक्ष ने उन्हें उठाकर अन्यत्र फेंक दिया । छल शक्तिमान से भी अधिक शक्तिशाली होता है । अतः नींद टूटने पर उन्होंने मंगलसूत्र को जमीन पर गिरा हुआ और स्वयं को वन में देखा । सोचने लगे
-यह क्या हुआ ? तत्पश्चात् वन में पूर्व की भाँति ही फिर भ्रमण करते हुए उन्होंने एक सात मंजिल वाला प्रासाद देखा । यह क्या किसी ऐन्द्रजालिक का इन्द्रजाल है, ऐसा सोचते हुए उन्होंने उस प्रासाद में प्रवेश किया । वहाँ प्रविष्ट होते ही उन्होंने एक तरुणी का उत्क्रोश भरा क्रन्दन सुना । उसके क्रन्दन से मानो वन भी क्रन्दन कर रहा था । दयार्द्रचित आर्यपुत्र उस क्रन्दन को सुनकर सीधे सातवीं मंजिल पर पहुंचे । वह महल ज्योतिष्क देवों के विमान की तरह प्रतिभासित हो रहा था । वहाँ उन्होंने एक रूप लावण्यवती विषण्णवदना नीचा मुँह किए एक कुमारी को अश्रु प्रवाहित कर रोते हुए देखा । वह बार-बार कह रही थी - 'हे कुरुकुल पु ंगव सनत्कुमार, इस जन्म में न होने पर भी दूसरे जन्म में आप ही मेरे पति बनना ।' ( श्लोक २२७-२३७) संदिग्ध मन से कि
'उसे अपना नाम उच्चारण करते सुनकर कौन मुझे इस प्रकार याद कर रही है, अभीष्ट देव की तरह उसके सम्मुख जाकर उपस्थित हो गए और बोले, 'शुभ्र ! सनत्कुमार कौन है ? तुम कौन हो ? तुम कैसे यहाँ आईं ? तुम्हारा दुःख क्या है जो तुम सनत्कुमार को पुकार-पुकार कर रो रही हो ?' यह सुनकर उस तरुणी के मन में आनन्द का संचार हुआ और वह मधुर स्वर में बोली
'देव, मैं सौराष्ट्र के राजा साकेत पुराधिपति की कन्या हूं । मेरा नाम सुनन्दा है । मेरी माँ का नाम चन्द्रयशा है । कुरुकुल सूर्य सनत्कुमार जिनके रूप से मदन भी पराजित होता है वे महाराज अश्वसेन के पुत्र हैं । वे ही दीर्घबाहु मेरे पति हैं कारण मेरे मातापिता ने मेरे स्वप्न-दर्शन के कारण जल का अंजलिदान देकर मुझे उन्हें दान कर दिया था । इसी बीच विवाह होने के पूर्व ही परद्रव्य अपहरणकारी दस्यु की तरह एक विद्याधर मेरे प्रासाद की छत से मुझे उठाकर यहाँ ले आया । वह मन्त्र बल से इस प्रासाद का निर्माण कर मुझे यहाँ रख गया है । वह अभी कहाँ है यह मैं नहीं