Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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'मित्र, तुम यहाँ कैसे आए, फिर तुम अकेले ही क्यों हो? तुम कैसे जान सके कि मैं यहाँ हं? और तुमने यह समय किस प्रकार व्यतीत किया ? मेरे विरह में पूज्य पिताजी कैसे हैं ? मेरे माता-पिता ने इस अगम्य स्थान में तुम्हें अकेला कैसे भेज दिया?'
(श्लोक १५८-१६६) इस प्रकार पूछने पर महेन्द्र सिंह अश्रुवाष्प रुद्ध कण्ठ से जोजो जैसा-जैसा घटा था सब कुछ बता दिया। तब सनत्कुमार ने कुशल विद्याधर अंगनाओं द्वारा उसको स्नान करवाकर भोजन करवाया। तदुपरान्त महेन्द्र सिंह ने विस्मय विस्फारित नेत्र किए सनत्कुमार से करबद्ध होकर पूछा--'वह अश्व तुम्हें कितनी दूर ले गया था और क्या-क्या घटनाएँ घटी सब कुछ मुझे बताओ और यदि गोपनीय न हो तो यह समृद्धि किस प्रकार प्राप्त हुई वह भी कहो।'
(श्लोक १६७-१७९) सनत्कुमार सोचने लगा-जो मेरा अभिन्न हृदयी मित्र है उससे छिपाना क्या; किन्तु आर्यों को यदि उनके सम्मुख दूसरा भी उनका दुःसाहसिक अभियान की सत्यकथा ही बतलावे तो भी वह सुनने में अस्वस्तिकर लगता है तो अपने मुख से अपने अभियान की कथा मैं अपने मित्र को कैसे कहं ? तब उन्होंने समीप ही बैठी अपनी पत्नी से कहा- 'बकुलमति, मुझे जोर से नींद आ रही है। तुम्हें विद्या से जो ज्ञातव्य है जानकर जो जो घटित हुआ है महेन्द्र सिंह को बतला दो।'
(श्लोक १७२-१७५) __ ऐसा कहकर वह सोने के लिए विश्रामघर की ओर चला गया। बकुलमति ने तब कहना प्रारम्भ किया-'उस दिन आपके सम्मुख वह अश्व आपके मित्र को लेकर अदृश्य हो जाने के पश्चात् एक महावन में प्रविष्ट हुआ। वह वन यम के गोपन क्रीड़ा-क्षेत्र की तरह भयंकर था। दूसरे दिन मध्याह्न में जब वह पंचम चाल में चल रहा था तो भूख-प्यास के कारण जीभ निकाल कर बीच राह में खड़ा हो गया। तब आर्यपुत्र घोड़े से उतरे, कारण घोड़े को नाभि श्वास उठ रही थी और घर की छत गिरते समय जैसे पाँव अकड़ जाते हैं वैसे ही उसके पैर अकड़ गए थे। आर्यपुत्र ने उसकी वल्गा खोल दी और उसके ऊपर की जीन भी हटा दी । घोड़ा तभी चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा और मानो मृत्यु के भय से ही उसका