Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२४७ का जीव सौधर्म कल्प से च्यव कर सहदेवी के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। हस्ती आदि चौदह महास्वप्नों को सहदेवी ने अपने मुख में प्रवेश करते देखा । यथासमय उसने सर्व सुलक्षणों से युक्त एक सर्वाङ्ग सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का रंग तपाए हुए सुवर्ण-सा था । राजा ने सबके साथ आनन्दप्रद महोत्सव मनाया और पुत्र का नाम रखा सनत्कुमार ।
(श्लोक ७४-७७) सुवर्ण वर्ण और चन्द्र-सा प्रिय वह बालक क्रमशः बड़ा होने लगा। वह एक राजा की गोद से दूसरे राजा के गोद में इस प्रकार जाने लगा जिसे देखकर लगा मानो हंस एक कमल से दूसरे कमल पर जा रहा हो। बाल्यकाल में भी अपने अपरूप सौन्दर्य के कारण वह मृगनयनी बालाओं की दृष्टि और मन दोनों ही हरने लगा। जिस प्रकार जलपान सहज ही किया जाता है उसी प्रकार उसने गुरुमुख निःसृत समस्त विद्याओं की जननी प्रकरण सहित व्याकरण पर अधिकार कर लिया। स्तम्भ-से बाहुबल के साथ-साथ उसने राजशक्ति के स्तम्भ रूप युद्ध विद्या और राजनीति पूर्णरूप से अधिगत कर ली। अन्य कलाएँ भी उसने सहज ही सीख लीं और कलानिधि के रूप में परिचित होने लगा। उसकी देह साढ़े इकतालीस धनुष ऊँची थी और मृत्युलोक से जिस प्रकार स्वर्गलोक प्राप्त होता है उसने भी उसी प्रकार वचपन से यौवन प्राप्त किया।
(श्लोक ७८-८९) कालिन्दी और सुर का पुत्र महेन्द्रसिंह सनत्कुमार का मित्र था। वह महाबलशाली था। एक दिन बसन्त ऋतु में सनत्कुमार क्रीड़ा के लिए मित्र सहित मकरन्द उद्यान में गया। नन्दनवन में देवकुमार जिस प्रकार क्रीड़ा करते हैं, उसी प्रकार उस उद्यान में वह मित्र सहित नाना क्रीड़ा करने लगा। तदुपरान्त अश्वपालक ने उसे पांच प्रकार की गतियों में दक्ष और सुलक्षण युक्त कुछ अश्व उपहार में दिए। उनमें तरंग-सा चपल जलधि-कल्लोल नामक एक अश्व था। खेल छोड़ कर सनत्कुमार उस अश्व पर चढ़ा। राजकुमारों को हस्ती और अश्व तो प्रिय होते ही हैं। सनत्कुमार एक हाथ में चाबुक और दूरे हाथ में लगाम पकड़ कर जघाओं के दबाव से उसे चलाने लगे। अश्व भी बिना भूमि-स्पर्श किए ही इस प्रकार सम्मुख दौड़ा मानो सूर्याश्व को