Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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गया तो गांथनी से जिस प्रकार कर्दम सहित ईंट निकल आती है उसी प्रकार रक्त, मांस, मज्जा, रस सहित वह पात्र उठा । जिनवाणी पर विश्वासवान जिनधर्म ने गृह लौटकर आत्मीय बन्धुबान्धवों को बुलवाया। सबसे क्षमायाचना और सबको क्षमादान कर मन्दिर गया । वहां तीर्थङ्करों की पूजा कर मुनियों से दीक्षा ग्रहण कर ली । दीक्षान्त में नगर परित्याग कर पर्वत - शीर्ष पर आरोहण किया । वहां संलेखना व्रत लेकर पूर्वाभिमुख होकर कायोत्सर्ग ध्यान में लीन हो गया । पीठ पर खुला मांस देखकर गिद्धादि पक्षी उसमें से मांस खींचने लगे उस असह्य वेदना को सहनकर जिनधर्म चारों ओर कायोत्सर्ग ध्यान में पंच परमेष्ठि मन्त्र का ध्यान करते हुए मृत्यु प्राप्त कर सौधर्म देवलोक में इन्द्र रूप में ( श्लोक ६०-६ उत्पन्न हुए । - ६५) त्रिदण्डी अग्निशर्मा मृत्यु के पश्चात् भृत्य कर्म बन्धन के कारण शक्र का वाहन ऐरावत हस्ती के रूप में सौधर्म देवलोक में ( श्लोक ६६ ) उत्पन्न हुआ । आयु शेष होने पर वहां से च्युत होकर त्रिदण्डी के जीव ने जन्म-जन्मान्तर से होते हुए यक्षराज असिताक्ष रूप में जन्म ग्रहण किया । ( श्लोक ६७ ) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुजंगाल देश में हस्तिनापुर नामक एक नगर था । वहां अश्वसेन नामक एक राजा राज्य करता था जिसकी अश्ववाहिनी से पृथिवी की मेखला जैसे पूर्ण होती थी उसी प्रकार शत्रु मेखला भी उसकी वक्र तलवार से अवदमित होती थी । गुण रूप रत्न से वह रोहण पर्वत जैसा था । दूध में जैसे जलकीटों को अवकाश नहीं होता उसी प्रकार उसमें सामान्य अणु मात्र भी दोष नहीं था । श्री उसकी तलवार की धार पर रहती थी मानो वह कोई दुःसह कार्य कर रही हो और यह कहना चाहती हो कि उसकी तुलना में वह तृणवत् है । प्रार्थीगण जब उनके पास आते तो वे उत्फुल्ल होते और जब प्रार्थियों को मांगने के लिए कुछ नहीं रहता तो हतोत्साह हो जाते। उसकी प्रधान रानी का नाम था सहदेवी । उसके सौन्दर्य को देखकर लगता मानो किसी देवी ने ( श्लोक ६८-७३) मृत्युलोक में अवतरण किया है ।
शक की समृद्धि का भोग कर आयुष्य पूर्ण होने पर जिनधर्म