Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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करोड़ रौप्य मुद्राएँ दान की और बलभद्र सहित समवसरण पहुंचे । भगवान को प्रदक्षिणा देकर, वन्दना कर पुरुषोत्तम वासुदेव अपने अग्रज सहित इन्द्र के पीछे जा बैठे। पुनः भगवान् को वन्दन कर शक्र, वासुदेव और बलदेव गद्गद् कण्ठ से निम्नलिखित स्तवन का पाठ करने लगे :
(श्लोक २०९-२१२) ___ हे प्रभो, जब तक आप मनुष्य के मन पर आधिपत्य नहीं करेंगे तब तक उनका अन्तर ऐश्वर्य विषय रूपी दष्युओं द्वारा लूटा जाता रहेगा। क्रोध रूपी अन्धकार जो मनुष्य को अन्ध कर देता है वह दूर से ही आपके दर्शनों के आनन्द के आनन्दाश्रु जल में काजल की तरह धुल जाता है। अज्ञानी मनुष्य तभी तक मान रूपी राक्षस के अधीन रहता है जब तक मन्त्र रूपी आपकी वाणी उनके कर्ण-कूहरों में प्रवेश नहीं करती। जिनकी मानरूपी शृखला छिन्न हो गई है और जो श्रद्धारूप यान को प्राप्त कर चुके हैं आपकी कृपा से मुक्ति उनके लिए बहत दूर नहीं है। जो जितना आकांक्षारहित होकर आपके पास आता है आप उसे उसी अनुपात से फल प्रदान करते हैं, राग-द्वेष संसार रूपी सरिता की मानो दो धाराएँ हैं। आपकी शिक्षा से वीत-राग-द्वेष होकर उन दोनों धाराओं के मध्य द्वीप की भांति अवस्थान करना सम्भव है। जिनका मन मुक्ति के लिए उन्मुख है उनका मोहान्धकार दूर करने को और कोई नहीं आप ही एक मात्र आलोकवतिका वहन किए हैं। हे प्रभो, आपकी दया से हम विषय-कषाय, राग-द्वेष और मोह द्वारा पराजित न हों आप हम पर ऐसी कृपा करें।'
(श्लोक २१३-२२०) इस भांति स्तवन कर शक्र वासुदेव और बलराम के चुप हो जाने पर भगवान् ने यह देशना दी
'पथ से अनभिज्ञ मनुष्य की तरह तत्त्व को नहीं जानने वाला व्यक्ति संसार रूपी अनतिक्रम्य महारण्य में पथभ्रान्त हो जाता है। जीव, अजीव, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं-ऐसा महापुरुषों ने कहा है।
___ 'इनमें जीव दो प्रकार हैं : मुक्त और संसारी। ये अनादि, अशेष और ज्ञान व दर्शनयुक्त हैं। इनमें मुक्त जीव स्व स्वभावयुक्त जन्म मरणादि के क्लेश से रहित अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त शक्ति और अनन्त सुख से युक्त हैं। संसारी जीव के भी-त्रस और