Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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देने पर पुरुषसिंह ने धैर्य धारण किया और चन्दन एवं अगरु की चिता बनाकर उनका दाह-कर्म सम्पन्न किया। (श्लोक १३४-१३८)
श्राद्धादि क्रिया सम्पन्न करने के पश्चात् जब राजसभा में आए तो बलदेव को पिता की मृत्यु का सूचक पत्र दिया । दुविनित सीमान्त राजा को पराजित कर इस पत्र को पाते ही वे दुःखीमना शीघ्रातिशीघ्र राजधानी लौट आए। दोनों भाई गले मिलकर इतनी जोर से रोए कि समस्त सभा भी उनके साथ रो पड़ी। अन्ततः बन्धु-बान्धवों के समझाने पर धैर्य प्राप्त कर वे शान्त हुए एवं धीरे-धीरे इस दुःख को भूलने लगे, फिर भी चलते-फिरते, उठते-बैठते, बातचीत करते हुए भी पिता की छवि उनके सम्मुख तैरती रहती।
(श्लोक १३९-१४३) जबकि वे इस प्रकार पिता के दुःख से दुःखित थे तभी अर्द्धचक्री निशुम्भ के यहाँ से दूत आया । द्वाररक्षक की सूचना पर उसे भीतर बुलवाया गया। दूत दोनों को प्रणाम कर बोला'आपके पिता की मृत्यु का संवाद सुनकर आपके स्वामी दयार्द्र-हृदय महाराज निशुम्भ बहुत दुःखी हुए हैं । आपके पिताजी की सेवाओं को स्मरण कर कर्तव्य-परायणों में अग्रणी महाराज ने मुझ आपके पास भेजा है.-आप लोग अभी बालक हैं अतः शत्रुओं के लक्ष्यस्थल हैं। आपके पिता जिस पद पर आसीन थे वह पद हम तुम्हें देते हैं। तुम लोग मेरे पास आ जाओ और निर्भय होकर रहो। दावाग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती जो जल में खड़ा रहता है । यद्यपि तुमलोग मेरे सम्मुख नगण्य हा फिर भी तुम्हारे पिताजी की सेवाओं के अनुदान स्वरूप तुम लोगों को सम्मान दूंगा।'
(श्लोक १४४-१५०) जब दूत इस प्रकार कह रहा था - उन दोनों का क्रोध उद्दीप्त हो गया और दुःख विदूरित । आवेग कितना ही प्रबल क्यों न हो वह अन्य आवेग से वाधित होता है। नेत्र और भृकुटि चढ़ाकर क्रुद्ध और कठोर स्वर में पुरुषसिंह बोला-'इक्ष्वाकु कुल के चन्द्ररूप सबके उपकारी हमारे पिताजी की मृत्यु से भला कौन नहीं दुःखी होगा।' अन्य राजा भी दुःखी हुए हैं-निशुम्भ भी दुःखी हुए हैं । वे यदि यह संवाद नहीं भेजते तो उनके लिए वह द्वेषकारक होता । किन्तु पूछता हूं सिंह-शावक को कौन अधिकार देता है और कौन