Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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करने लगे । जीवन से उदासीन दोनों ओर के सैन्यदल प्रलयकाल की भांति निहत होने लगे । अग्नि जिस होती है उसी प्रकार वासुदेव बलदेव द्वारा खड़े होकर पाञ्चजन्य शंख को बजाया । शत्रु सैन्य इस प्रकार कांप उठे मानो वज्रपात हुआ हो ।
( श्लोक १६५ - १७२ )
'खड़े रहो, खड़े रहो, तुम स्वयं को बहुत बड़े योद्धा समझ रहे हो, कहते हुए प्रतिद्वन्द्विता के लिए आह्वान कर प्रतिवासुदेव रथारूढ़ होकर युद्ध के लिए वासुदेव की ओर अग्रसर हुआ । वासुदेव और प्रतिवासुदेव ने क्रोध में चढ़ी भृकुटि की तरह धनुष पर टंकार किया । मेघ जैसे जल बरसाता है उसी प्रकार दोनों बाण बरसाने लगे । उनके सिंह से गर्जन ने खेचर रूपी हरिणों को कम्पित कर दिया । समग्र युद्ध क्षेत्र में अविराम शर वर्षण ने शराच्छादित समुद्र का रूप धारण कर लिया । हस्तक्षेपित, यन्त्रक्षेपित वा अक्षेपित और अन्य अस्त्रों द्वारा, जल में जैसे दो तिमिंगल युद्ध करते हैं उसी प्रकार, वे युद्ध करने लगे । (श्लोक १७३-१७७)
प्रकार वायु द्वारा अनुसृत अनुसृत होकर स्व-रथ में उस शब्द से चारों ओर के
तब वज्री जैसे वज्र को स्मरण करता है उसी प्रकार निशुम्भ ने सर्वग्रासी भयानक तीक्ष्ण और प्रज्ज्वलित अग्निशिखा रूप चक्र को स्मरण किया । चक्र उपस्थित होने पर उसे अँगुलियों में घुमाकर वह दर्प के साथ बासुदेव को बोला -
'तुम बालक हो अतः तुम दया के पात्र हो । तुम यदि अब भी पलायन करते हो तो इसमें तुम्हारे लिए लज्जाजनक क्या है ? अतः या तो भागो या मेरी सेवा करो। तुम्हारे पास ऐसा कुत्ता भी नहीं जो तुम्हें सत्परामर्श दे । निक्षिप्त इस चक्र से मैं पर्वत को भी छेद सकता हूं, तो फिर लौकी के जैसे तुम्हारे गले की तो बात ही क्या ।' (श्लोक १७८ - १८१)
पुरुषसिंह ने प्रत्युत्तर दिया- 'तुम जो इस भांति चीत्कार कर रहे हो तो अब देखना होगा कितनी शक्ति तुम में है, कितनी चक्र में है । अन्य अस्त्रों से तुम क्या कर सके हो । मेघ जैसे इन्द्रधनुष को वहन करता है इस चक्र को वैसे ही तुम वहन कर रहे हो । मूर्ख ! यह हमारा क्या कर सकेगा ? निक्षेप करो, इसकी सामर्थ्य भी अब देखेंगे ।' ( श्लोक १८२ - १८३ )