Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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हैं। तुम्हारा अनिष्ट तो तुम्हारे कृत कर्मों द्वारा ही हो रहा है । उसी के कारण तुम दुःख पा रहे हो। कुत्ता पत्थर फेंकने वाले पर नहीं झपटता बल्कि पत्थर पर झपटता है जबकि सिंह तीर पर न झपटकर तीर फेंकने वाले पर झपटता है। तब क्यों हम अपने स्वकर्मों की उपेक्षा कर उस कर्म के लिए जो हमारा अनिष्ट कर रहा है उस पर क्रोध करके पाप-पंक में डूबें। (श्लोक २४०-२४४)
'भविष्य में भगवान् महावीर क्षमा को सिद्ध करने के लिए मलेच्छ देश में जाएँगे। कारण सहज भाव से प्राप्त क्षमा तब तक क्षमा नहीं है जब तक परीक्षित नहीं हो जाती है। महाप्रलय में जो त्रिलोक की रक्षा करने में समर्थ हैं ऐसे व्यक्ति भी जब अनिष्ट आचरणकारी के प्रति क्षमा धारण करते हैं तब कदली वृक्ष की तरह स्वल्प सत्व सम्पन्न आप लोग क्यों क्षमा धारण नहीं करेंगे ? ताकि कोई आपका अनिष्ट नहीं कर सके ऐसा पूण्य क्यों नहीं अजित करते ? आप लोग अपने पूर्व प्रमाद की आलोचना कर क्षमा के लिए तत्पर बनिए। हे आत्मन्, क्रोधान्ध मुनि और चाण्डाल में पार्थक्य कहां है ? अतः क्रोध का परित्याग कर शुभ भाव ग्रहण करो। एक महर्षि क्रोधी थे; किन्तु करगड़ क क्रोधी नहीं था अतः देवों ने महर्षि की उपेक्षा कर करगड़ क को वन्दना और नमस्कार किया। यदि कोई मर्मभेदी बात कहता है तब विचार करो जो कुछ यह कह रहा है वह यदि सत्य है तब तो क्रोध करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, यदि वह मिथ्या है तब भी क्रोध करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि वह उन्माद का प्रलापमात्र है। यदि कोई हमें आघात पहुंचाने आए तो सोचिए मेरे अशुभ कर्म के कारण ही यह आघात आ रहा है, यह मूर्ख व्यर्थ ही आघात देने के पाप का भागी बन रहा है। यदि कोई तुम्हारा वध करने आए तब सोचो कि मैं दुर्भाग्यवश ही हत हुआ हूं अत: निर्भय होकर निहत की हत्या के पाप कर्म का बन्धन करने वह आ रहा है। समस्त पुरुषार्थ अपहरणकारी क्रोध रूपी तस्कर पर यदि तुम्हें क्रोध नहीं आता है तो निमित्त मात्र बने अल्प अपराधी पर क्रोध कर तुम स्वयं ही क्या धिक्कार के पात्र नहीं बन रहे हो? एतदर्थ जो बुद्धिमान हैं वे समस्त इन्द्रियों को क्षय करने वाले चारों ओर विस्तृत क्रोध रूपी