Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 237
________________ २२८] है । हे निखिल जन तारक, ये सभी आपकी शक्ति से भ्रातृभावापन्न हो गए हैं। त्रिजगत्पति, अर्द्ध भरत क्षेत्र की आदिम दिव्यता की रक्षा कर हम लोगों की, जिनका कि कोई रक्षक नहीं है, आप रक्षा करें। हे भगवन्, हम बारम्बार यही प्रार्थना करते हैं कि आपके चरणों में हम लोगों का मन रूपी भ्रमर सर्वदा संलग्न रहे।' (श्लोक २०९-२१७) इस भांति स्तुतिकर शक्र, वासुदेव और बलराम के निवृत्त हो जाने पर प्रभु ने यह देशना दी : ___'संसार के चारों वर्गों में मोक्ष का स्थान सभी के ऊपर है जिसके मूल में है आत्म-समाहिति । आत्म-समाहिति सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी त्रिरत्नों के द्वारा प्राप्त होती है। जो ज्ञान तत्त्वानुसारी है वह सम्यक्-ज्ञान है। इस तत्त्व में सम्यक् श्रद्धा ही सम्यक् दर्शन है और इसी के अनुसार हेय का त्याग ही सम्यक् चारित्र है। आत्मा तो स्वयं ही सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूपी है। आत्मा ने अज्ञान के कारण जिन दुःखों को उत्पन्न किया है उनका निवारण आत्म-ज्ञान के द्वारा ही होता है। जो आत्म-ज्ञान से रहित है उनके तपस्या करने पर भी अज्ञानजनित दुःखों का छेदन नहीं हो पाता। यह आत्मा चैतन्य रूप है किन्तु कर्मयोग-से शरीर धारी हो जाती है। जब इसके ध्यान रूपी अग्नि में कर्ममल दग्ध हो जाते हैं तब यह दोष रहित परम विशुद्ध सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर लेती हैं। यही आत्मा जब कषायों एवं इन्द्रियों के वशीभूत हो जाती है तब संसारी और कषाय एवं इन्द्रियों को जय कर लेती है तब वह मुक्त हो जाती है ऐसा ज्ञानियों का कथन है। (श्लोक २१८-२२५) _ 'कषाय चार प्रकार के हैं : क्रोध, मान, माया और लोभ । इनके भी चार-चार प्रकार के भेद होते हैं। यथा-संज्वलन, प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी और अनन्तानुबन्धी। इनमें संज्वलन एक पक्ष तक, प्रत्याख्यानी चार मास तक, अप्रत्याख्यानी एक वर्ष तक और अनन्तानुबन्धी जीवन पर्यन्त रहता है। संज्वलन कषाय वीतरागता में बाधक है, प्रत्याख्यानी कषाय साधूता में, अप्रत्याख्यानी कषाय श्रावकत्व में, अनन्तानुबन्धी कषाय सम्यक् दृष्टि में बाधक है। संज्वलन कषाय देवत्व, प्रत्याख्यानी कषाय मानव

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