Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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परिणाम में कोई अन्तर नहीं रहता अर्थात् सभी के परिणाम समान हो जाते हैं उसे अनिवृत्तिबादर गुणस्थान कहते हैं । इस गुणस्थान में उपस्थित महात्मा या तो उपशमक होते हैं नहीं तो क्षपक । यहां मोहनीय कर्म के लोभ की सूक्ष्म प्रकृति के अतिरिक्त कोई प्रकृति उदय में नहीं आती ।'
१० ' सूक्ष्म संपराय इस गुणस्थान में लोभ की सूक्ष्म प्रकृति का वेदन होता है । इसमें लोभ को सर्वथा उपशान्त किया जाता है या क्षय किया जाता है ।'
११ 'उपशान्त मोह वीतराग गुणस्थान में उपस्थित आत्मा का मोह सम्पूर्ण उपशान्त हो जाता है ।'
१२ ' दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में जो मोह ( लोभ ) को सम्पूर्णतः क्षय कर देता है वह सीधा बारहवें गुणस्थान में आकर क्षीण-मोह वीतराग हो जाता है ।'
१३ ' क्षीण - मोह गुणस्थान के अन्तिम समय में शेष तीन घाती कर्म क्षय कर आत्मा जब केवल ज्ञान, केवल दर्शन को प्राप्त करता है तब उसे सयोगी केवली कहा जाता है । यहां आत्मा सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान हो जाता है ।'
१४ 'सयोगी केवली मन, वचन और काय योग का निरोध कर अयोगी केवली हो जाते हैं और शैलेशीकरण से सिद्ध भगवान बन जाते हैं ।' (श्लोक २५२-२६२) 'इस प्रकार निम्नतम दशा से आत्मा परमात्म दशा प्राप्त करती है ।'
'धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय और काल ये पांच अजीव तत्त्व हैं। पांच ये और जीव मिल कर छह द्रव्य होते हैं । काल को छोड़कर पांच द्रव्यों के प्रदेश सूक्ष्म विभाग के समूह रूप होते हैं । काल प्रदेश रहित है । इनमें जीव ही चैतन्य (उपयोग ) युक्त और कर्त्ता है - शेष पांच द्रव्य अचेतन और अकर्त्ता है काल को छोड़कर शेष पांच द्रव्य अस्तिकाय है अर्थात् प्रदेशों के समूह रूप हैं । इनमें पुद्गल द्रव्य ही रूपी है । अन्य पांच द्रव्य अरूपी हैं । यही छह द्रव्य उत्पाद (नवीन अवस्था में उत्पत्ति), व्यय ( भूत पर्याय का नाश ) और धौव्य विद्यमान ) युक्त है ।
( द्रव्य रूप में सर्वथा
( श्लोक २६३-२६५)