Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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शिव । वे आनन्द के निवास रूप थे । उनकी दो पत्नियाँ थीं विजया और अम्मका । वे दोनों ही कीर्ति और सौभाग्य की तरह राजा को प्रिय थी । पुरुषवृषभ का जीव सहस्रार से च्युत होकर देवी विजया के गर्भ में प्रविष्ट हुआ । विजया ने बलदेव के जन्म सूचक चार महास्वप्न देखे । समय पूर्ण होने पर रानी विजया ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। देखकर लगता मानो उनके स्वामी का यश ही जैसे मूर्तिमान हो उठा है । जातक के सौन्दर्य के कारण राजा शिव ने एक शुभ दिन उत्सव कर पुत्र का नाम रखा सुदर्शन । (श्लोक ७५-७९) विकट का जीव भी द्वितीय स्वर्ग से च्युत होकर अम्मका के गर्भ में प्रविष्ट हुआ । अम्मका ने विष्णु के जन्म सूचक सात महास्वप्न देखे । यथा समय उन्होंने सरिता जैसे नील कमल उत्पन्न करती है उसी प्रकार सर्व सुलक्षण युक्त इन्द्रनील मणि-सा गाढ़े नीले वर्ण के एक पुत्र रत्न को जन्म दिया । वह जातक मनुष्यों में सिंह की भांति अमित बल का अधिकारी होने के कारण पिता ने उसका नाम रखा पुरुष सिंह | ( श्लोक ८०-८२ )
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धात्रियों द्वारा पालित होते हुए वे दोनों एक साथ क्रमशः बड़े होने लगे । तालध्वज और गरुड़ध्वज वे दोनों नीला और पीला वस्त्र धारण करते थे । वे इतने मेधावी थे कि समीप ही रखी निधि की तरह समस्त कलाओं में पारंगत हो गए। शिक्षक तो मात्र साक्षी थे । क्रमशः उनकी उम्र युद्ध करने जैसी हुई । सहोदर अश्विनी कुमार की तरह वे परस्पर स्नेह भावापन्न थे। पिता के प्रति उनकी अपार श्रद्धा थी और उनके आदेश का वे भृत्य की तरह पालन करते थे । ( श्लोक ८३-८६ )
एक दिन राजा शिव ने बलदेव को दिव्य अस्त्र की तरह पार्श्ववर्ती अविनीत राज्य को दमन करने के लिए भेजा । स्नेह के कारण पुरुषसिंह ने भी उनका अनुगमन किया । स्नेह का बन्धन पत्थर-सा दृढ़ होता है । बहुत कष्ट से बलदेव ने उन्हें अपने अनुगमन से निवृत्त किया । तब वासुदेव यूथभ्रष्ट हस्ती की तरह जहाँ थे वहीं अवस्थित रहे । भाई के विच्छेद की विरह वेदना दूर करने के लिए जब वे क्रीड़ा - कौतुक में मग्न थे तभी उनके पिता के पास से एक दूत आया । दूत ने उन्हें जो पत्र दिया उसे उन्होंने मस्तक