Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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दक्षिण भरतार्द्ध शीघ्र ही आपकी देशना रूप वाणी द्वारा पूर्ण हो जाएगा । हे भगवन्, राजा जैसे शत्रुओं के देश को जन-शून्य कर देता है उसी प्रकार आप बहुत लोगों को मोक्ष प्राप्त करने में सहायता कर पृथ्वी को जन-शून्य कर देंगे । हे भगवन्, स्वर्ग में भी मेरा मन भ्रमर की तरह आपके चरण-कमलों से लग्न होकर दिनरात व्यतीत करे ।' ( श्लोक ३५-४७) इस प्रकार स्तुति कर शक ने भगवान् को ईशानेन्द्र की गोद से लेकर उन्हें यथाविधि ले जाकर रानी सुव्रता के पार्श्व में सुला दिया । ( श्लोक ४८ )
धर्माराधना का का नाम रखा
( श्लोक ४९ )
जातक जब गर्भ में था तब सुव्रता रानी को दोहद उत्पन्न होने के कारण राजा भानु ने जातक धर्म | धर्मनाथ स्वामी ने बालक रूपी देवों के साथ क्रीड़ा कर बाल्यकाल व्यतीत किया । आपने ४५ धनुष दीर्घ होकर यौवन को प्राप्त किया । माता-पिता की दीर्घकाल से जो इच्छा थी उसे पूर्ण करने के लिए एवं भोग कर्मों को क्षीण करने के लिए प्रभु ने विवाह किया । जन्म से अढ़ाई हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर पिता के आदेश से उन्होंने राज्यभार ग्रहण किया । प्रभु ने पाँच लाख वर्ष तक राज्य शासन किया और यथासमय दीक्षा ग्रहण करने का विचार किया । ( श्लोक ५०-५३)
उसी समय लोकान्तिक देवों ने आकर प्रभु से कहा - 'हे देव, तीर्थ स्थापना करें ।' प्रभु ने दीक्षा रूपी नदी के मुख रूप वर्षी दान किया । तदुपरान्त देवों द्वारा अभिषिक्त होकर नागदत्ता शिविका पर आरूढ़ होकर प्रभु वप्रकांचन नामक उद्यान में पहुंचे । प्रभु ने शैत्ययुक्त उस सौन्दर्य-मण्डित उद्यान में प्रवेश किया । प्रियंगु पुष्पों की सुगन्ध से मतवाले भ्रमर वहां गु ंजन कर रहे थे । उद्यान - पालिकाएँ पुष्पों अलंकारों की रचना में व्यस्त थीं । वे अपने मुखों को लोध्ररेणु द्वारा नगर-नारियों की तरह लिप्त कर रखी थीं । मदन के वाण - सा यूथिपुष्प विकसित हो गया था । उद्यान- बालाएँ लवली पुष्पों को कर्तन कर रही थी जिसका भूमितल मुचुकुन्द रसवारिसे सिक्त हो उठा था । वह भूमि सुगन्धयुक्त थी और मरकतमण्डित हो ऐसा भ्रम होता था । . ( श्लोक ५४-५९ )