Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२०७ स्थावर दो भेद हैं । पर्याप्ति और अपर्याप्ति भेद से ये भी दो प्रकार के है । पर्याप्तिदशा की कारणभूत हैं छह पर्याप्तियां । यथा - आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, श्वांसोश्वांस पर्याप्ति, भाषा पर्याप्ति और मनः पर्याप्ति । इन छह में अनुक्रम से एकेन्द्रिय के चार पर्याप्ति, द्विन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय के ( असंज्ञी पंचेन्द्रीय सहित ) पांच पर्याप्ति और संज्ञी पंचेन्द्रियों के छह पर्याप्तियां हैं ।
( श्लोक २२१ - २२८ ) 'पृथ्वी काय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय एकेन्द्रिय जीव स्थावर है अर्थात् चलने की शक्ति से रहित है । पहले चार अर्थात् पृथ्वीकाय से वायुकाय तक के जीवों के भी सूक्ष्म और बादर दो भेद हैं । बनस्पतिकाय के जीव भी दो प्रकार के हैं । यथा - प्रत्येक वनस्पति और साधारण वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति बादर है और साधारण वनस्पति सूक्ष्म और बादर दोनों है । त्रस जीव भी दो तीन चार पांच इन्द्रियों के कारण चार प्रकार के हैं । इनमें दो इन्द्रिय वाले जीवों से लेकर चतुरिन्द्रिय जीव तक असंज्ञी हैं। पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञी दोनों प्रकार के होते हैं । संज्ञी वे हैं जो पढ़ने-पढ़ाने सकें, बोल सकें, जो मानसिक प्रवृत्तियुक्त हैं ।
इनके विपरीत हैं वे असंज्ञी हैं । स्पर्श, रसना, नासिका, नेत्र, और कान ये पांच इन्द्रियां हैं । इनके विषय हैं क्रमशः स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द | (श्लोक २२९ - २३३) 'द्विन्द्रिय जीव कृमि, शंख, गण्डीपद, जोंक और सीप आदि हैं । त्रीन्द्रिय जीव जूँ, खटमल आदि हैं । चतुरिन्द्रिय पतंगे, मछली, भ्रमर, मच्छर इत्यादि । पंचेन्द्रिय जल, स्थल और आकाशचारी तीन प्रकार के तिर्यंच प्राणी, नारक, मनुष्य और देव ।
वचन
( श्लोक २३४-२३६) 'श्रोत्रादि पांच इन्द्रियां, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य, मन, और काया से दस प्राण हैं । काया, आयुष्य, श्वासोच्छ्वास और स्पर्शेन्द्रिय ये चार प्राण तो सभी प्राणियों में होते हैं । द्विन्द्रिय में रस, त्रीन्द्रिय में गन्ध, चतुरेन्द्रिय में वचन और नेत्र होते हैं । असंज्ञी पंचेन्द्रिय के कान और संज्ञी जीवों के मन रहता है ।
( श्लोक २३७-२३८) 'नारकीयों का कुम्भो में एवं शय्या में उपपात रूप से उत्पन्न