Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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नन्दा को देखा। उसे देखते ही उसका देह स्तम्भित हो गया मानो वह कामदेव के असह्य शर से बिंध गया हो, इस प्रकार स्वेदपूर्ण हो गया मानो विच्छेद के ताप से जल गया हो, इस प्रकार रोमांचित हो उठा मानो प्रेम का अंकुर प्रस्फुटित हो गया हो, उसके देह-सौष्ठव को देखकर चण्डशासन का कण्ठ अवरुद्ध हो गया मानो राहु ने उसे ग्रस लिया हो, उसकी देह कांपने लगी मानो वह उसके आलिंगन को उत्सुक हो गया हो, वर्णहीन हो गया मानो उसे न पाने के दुःख से विवर्ण हो गया हो, अश्रुजल से उसकी दृष्टि मूसिन्न हो गई मानो उसे न पाने के कारण उसकी मृत्यु सम्मुख उपस्थित हो गई हो। सुगठित अंग-प्रत्यंग वाली नन्दा को देखकर इस भांति के कौन-कौन से भाव उसके मन में उदित नहीं हुए ?
(श्लोक ७७-८५) समुद्रदत्त मित्र पर विश्वास करते थे। इसका लाभ उठाकर चण्डशासन बाज जैसे हार उठाकर ले जाता है उसी प्रकार नन्दा का अपहरण कर ले गया। राक्षस-से शक्तिशाली और मायावी मनुष्य द्वारा अपहृत पत्नी का उद्धार करने में असमर्थ समुद्रदत्त को संसार से वैराग्य हो गया। हृदय में अपमान का शल्य लिए उसने मुनिवर श्रेयांस से दीक्षा ग्रहण कर ली और कठोर तपस्या कर यह निदान कर लिया कि यदि इस तपस्या का कुछ फल है तो मैं नन्दा के अपहरण करने वाले का बध कर सकू। इस निदान से उसने तप के फल को सीमित कर लिया और मृत्यु के पश्चात् सहस्रार देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ।
(श्लोक ८७-९१) यथा समय चंडशासन की भी मृत्यु हुई और संसारावर्त में विभिन्न भवों में भ्रमण करता हुआ वह इसी भरत क्षेत्र की पृथ्वी नामक नगरी में राजा विलास के औरस से गुणवती के गर्भ से मधू नामक पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। तीस लाख वर्ष की परमायु वाला पचास धनुष दीर्घ तमालवीय मधु चलमान पर्वत-सा लगता था। अपनी लम्बी भुजाओं के कारण वह मनोहर एवं प्रशस्त वक्ष के कारण अधित्यका निवासी दोनों दन्त विशिष्ट दिग्गज-सा लगता था। धीर भाव से चलने पर भी उसके पदचाप से पृथ्वी घास-फस पूर्ण विवर की भांति धंस जाती। जब वह पूर्ववर्ती राजाओं के वीरत्व की कहानी सुनता तब उसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है जानकर दःखी होता। उसने एक छोटे ग्राम की तरह खेल-खेल में भरतार्द्ध