Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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को लौटा देता है; किन्तु उनके क्रुद्ध होने पर जो कुछ भी ऐश्वर्य आपके पास है सब नष्ट हो जाएगा। कारण, प्रभु के ऋद्ध हो जाने पर उनके भय से ही ऐश्वर्य चला जाता है। प्रभु यदि विरोधी हों तो ऐश्वर्य तो दूर पत्नी, पुत्र, बन्धु-बान्धव भी नहीं रह पाते हैं। आप प्रभु की आज्ञा का पालन कर विधिवत् राज्य शासन करिए। आपके विरोधियों के वाक्य कुकुर-चीत्कार की भांति मिथ्या हो जाएँ।'
(श्लोक १३७-१४८) यह सुनकर क्रोध से उन्मत्त बने पुरुषोत्तम बोले- 'दूत होने के कारण तुम्हारा वध नहीं किया जा सकता तभी तुम नरक के कुत्ते की तरह इस प्रकार बोल सके हो। तुम उन्मादी हो या मद्यप, प्रमादी हो या पिशाचग्रस्त जो ऐसा बोल रहे हो ? लगता है तुम्हारे प्रभु ही ऐसे हैं जिन्होंने यह सब कुछ कहने को तुम्हें भेजा है ? बच्चों के नाटक में जैसे कोई बच्चा राजा का अभिनय करे उसी प्रकार तुम्हारे प्रभु भ्रमित प्रभु का अभिनय कर रहे हैं। उस अविनयी को हमने कब प्रभु कहकर स्वीकृत किया है ? वाक्यों से ही यदि इच्छा का परिमाप हो सकता है तो वे स्वयं को इन्द्र क्यों नहीं कहते ? राज्य-ऐश्वर्य सम्पन्न हम पर उन्होंने ही आक्रमण किया है। ज्वार द्वारा कल पर निक्षिप्त होकर मछलियां जिस प्रकार मारी जाती हैं तुम्हारे प्रभु भी अब मेरे द्वारा उसी प्रकार मृत्य को प्राप्त होंगे। जाओ-करकामी अपने प्रभु से कहो-यहां आकर युद्ध कर कर ले जाएँ। क्रीतदास का अर्थ जैसे ग्रहण किया जाता है उसी प्रकार उसके प्राण सहित मैं अब उनका समस्त ऐश्वर्य ग्रहण करूंगा।'
(श्लोक १४९-१५४) पुरुषोत्तम के कथन से ऋद्ध बना दूत लौट गया। कहना कठिन था फिर भी उसने सारा वृत्तान्त मधू को खोलकर बता दिया। मेघ शब्द से शरम जैसे क्रुद्ध हो जाता है वैसे ही वासुदेव के कथन से मधु क्रुद्ध हो उठा। उसने उसी क्षण युद्ध का नगाड़ा बजाने की आज्ञा दी नगाड़े की भयङ्कर आवाज सुनकर खेचरों ने कान में उंगली डाल ली। मुकुटधारी राजा, अप्रतिहत योद्धा, सेनापति, मन्त्री अन्य सामन्त और युद्ध में उसी के अनुरूप योद्धाओं से परिवत्त होकर मधु ने देवों की तरह माया रूप धारण कर युद्ध के लिए प्रयाण किया। बुरे शकुन और अमङ्गलकारक चिह्नों की उपेक्षा