Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२०१ लोक मुख से कभी द्वारिकाधीश सोम के दोनों पुत्र सुप्रभ और पुरुषोत्तम के विषय में नहीं सुना ? महाबलशाली, दीर्घबाहु, परस्पर स्नेहशील और दुस्सह, मूर्तिमान पवन या अग्नि, एक हाथ में समुद्र
और पर्वत, पृथ्वी को उठाने में समर्थ हैं। उन्हें देखकर लगता है मानो कौतूहल के लिए शक्र और ईशानेन्द्र ही इस पृथ्वी पर उतर आए हैं। सिंह जैसे वनखण्ड पर अधिकार कर लेता है उसी प्रकार भरत पर उनका अधिकार है। मदान्ध हस्ती की तरह अज्ञानवशतः आप वृथा गर्व कर रहे हैं।'
(श्लोक १२८-१३३) यह सुनते ही मधु के नेत्र क्रोध से रक्तिम हो उठे, तुरन्त जैसे युद्ध की कामना कर रहा हो इस प्रकार वह दांत पीसते हुए बोला"आप जो कुछ कह रहे हैं वह यदि सत्य है तो मैं यम और आपको इस युद्ध को देखने के लिए आमन्त्रित करता हूं और यह भी कहता हूं कि मैं द्वारिका को सोम, सुप्रभ और पुरुषोत्तम से शून्य कर दूंगा यह अन्यथा नहीं है।'
(श्लोक १३४-१३६) ऐसा कहकर नारद को विदा देते हुए उन्होंने सोम और सोमपुत्रों से गोपनवार्ता करने वाला दूत भेजा। दूत की यद्यपि अपनी कोई शक्ति नहीं होती; किन्तु वह अपने प्रभु की शक्ति से शक्तिशाली हो जाता है। इसी प्रकार शक्तिशाली बनकर वह दूत सोम और सोम-पुत्रों के पास जाकर बोला
'गवियों के गर्व को खण्डन करने वाले, सदाचारियों के लिए सौम्य बाहबल से सर्वत्र विजयी, युद्ध विद्या में प्रवीण, जिनके चरणकमलों की दक्षिण भरतार्द्ध के उच्चकुल जात राजन्यरूपी हंस दास की तरह सेवा करते हैं, वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के विद्याधर राजा भी जिन्हें कर देते हैं, द्वितीय आखण्डल की भांति जिनकी आज्ञा सभी शिरोधार्य करते हैं वही अर्द्ध-चक्री मधु अर्द्ध-भरतरूपी उद्यान के बसन्त रूप आप लोगों को यह आदेश देने के लिए मुझे यहां भेजा है-राजन्, ध्यान से सुनिए। हम जानते हैं कि आप हमारे प्रभु के प्रति अनुगत थे; किन्तु अब सुना गया है कि आपने अपने पुत्रों के बल के कारण उस आनुगत्यं को बदल दिया है। यदि पूर्व की तरह ही आपका आनुगत्य उनके प्रति है तो कोष की चाबी सहित उन्हें उपहार भेजें । उनकी इच्छा से आप सब कुछ फिर प्राप्त कर सकते हैं। सूर्य पृथ्वी से जो जल ग्रहण करता है वह पुनः पृथ्वी