Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१९९ को जय कर लिया और असीम बाहबलधारी के रूप में अपना नाम चन्द्रमण्डल में खुदवा दिया। चक्र द्वारा शत्रुओं का दमन कर वह शक्र की तरह शक्तिशाली और मनुष्यों में सूर्यतुल्य चतुर्थ प्रतिवासुदेव हुआ।
(श्लोक' ९२-९९) उसके कैटभ नामक एक भाई था । वह धान से तुष निकालने वाला सूप की तरह शत्रुओं को हाथों से विमर्दित कर देता। शत्रु श्रियों का उपभोग करने के कारण उसने सुन्दर स्वरूप प्राप्त किया था।
_ (श्लोक १००) उसी समय चन्द्र-सूर्य-से गुणवान सोम नामक एक राजा द्वारका में राज्य कर रहे थे। उनके दो पत्नियां थीं जिनमें एक का नाम था सुदर्शना । वह देखने में बहुत सुन्दर थी। दूसरी का नाम था सीता । सीता का मुख था पूर्ण चन्द्र-सा। सहस्रार स्वर्ग से राजा महाबल का जीव च्युत होकर सुदर्शना के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। रात्रि के शेष याम में बलदेव के जन्म की सूचना देने वाले चार महास्वप्न उसने देखे । नौ महीना साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर रानी सूदर्शना ने चाँद-से गौरवर्णीय एक पुत्र को जन्म दिया। राजा सोम ने भिक्षार्थियों को तृप्त कर महा उत्सव के साथ पुत्र का नाम रखा सुप्रभ ।
(श्लोक १०१-१०६) समुद्रदत्त का जीव भी सहस्रार देवलोक का आयूष्य पूर्ण कर रानी सीता के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। रात्रि के शेष याम में सुखशय्या में सोई हई उसने वासूदेव के जन्म सूचक सात महास्वप्नों को अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखा । समय पूर्ण होने पर उसने सर्व सुलक्षणयुक्त मरकतवर्णीय एक पुत्र को जन्म दिया। एक शुभ दिन देखकर पिता ने चतुर्थ वासुदेव का नाम रखा पुरुषोत्तम ।
(श्लोक १०७-११० नील और पीत वस्त्रधारी तालध्वज और गरुड़ध्वज वाले दीर्घबाहु वे परस्पर असीम प्रेम के कारण यमज-से लगते थे। उन्होंने अल्प समय में ही गुरु से समस्त विद्याएँ सीख लीं। पूर्व जन्म के सुकृतों के कारण ही महापुरुषों के लिए यह सम्भव हो पाता है। खेल ही खेल में उनके द्वारा किए मुष्ठाघात को भी सैनिक सहन नहीं कर पाते थे। कारण, हस्ती स्पर्शमात्र से और सर्प निःश्वॉस मात्र से ही निहत करने में समर्थ होते हैं। पवन-से बलशाली वे श्री