Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 206
________________ [१९७ उतरे और उसी उद्यान में प्रविष्ट हुए। उन्होंने अपने अलंकारादि उतार दिए। बैशाख कृष्ण चतुर्दशी को चन्द्र जब रेवती नक्षत्र में था तब दो दिनों के उपवासी प्रभु ने एक हजार राजाओं सहित दीक्षा ग्रहण की । प्रभु को वन्दना कर शक्रादि देव कार्य समाप्ति पर जैसे मनुष्य घर लौट जाते हैं वैसे ही अपने-अपने निवास स्थान को लौट गए। दूसरे दिन सुबह चौदहवें तीर्थंकर भगवान् ने वर्द्धमानपुर के राजा विजय के घर खीरान्न ग्रहण कर उपवास का पारणा किया। उसी समय रत्नवष्टि आदि पंच दिव्य प्रकट हुए। प्रभु जहां खड़े थे उस स्थान पर राजा विजय ने एक रत्नमय वेदी का निर्माण करवाया। प्रभु अपछद्म (मायाहीन) होने पर भी छद्मस्थ साधूओं की तरह परिषहों को सहन करते हुए विभिन्न स्थानों में विचरण करने लगे। (श्लोक ६३-६८) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में आनन्द के निकेतन स्वरूप नन्दपुरी नामक एक नगर था। वहां के राजा का नाम था महाबल । शत्रुपत्नियों के लिए दुःखदानकारी वे अशोक वृक्ष की तरह कुलरूपी उद्यान के अलंकार स्वरूप थे। महामना वे जिस भांति चतुर नगरवासी ग्रामवासी से वीतश्रद्ध हो जाते हैं वैसे ही संसार-वास से वीतश्रद्ध हो गए थे। उन्होंने ऋषि वृषभ के चरणों में पहुंचकर केश उत्पाटित कर चारित्र ग्रहण कर लिया। उत्तम फल प्रदान करने वाले चारित्र का पालन कर मृत्यु के पश्चात् वे सहस्रार देवलोक में मुख्य देव के रूप में उत्पन्न हुए। (श्लोक ६९-७३) जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पुरन्दर की नगरी जैसी कौशाम्बी नामक एक नगरी थी। उस नगरी के राजा का नाम था समुद्रदत्त । वे समुद्र की तरह ही गम्भीर थे और शत्रुओं के समस्त रत्नों के आकर थे। उनके नन्दा नामक एक पत्नी थी। वे चन्द्रालोक की तरह नेत्रों को प्रिय और सौन्दर्य में देव रमणियों के गर्व को भी खण्डन कर देने वाली थीं। (श्लोक ७४ ७६) मलय देश के राजा चंडशासन समुद्रदत्त के मित्र थे। बसन्तमित्र मलय पवन की तरह एक बार वे समुद्रदत्त के यहां गए। समुद्रदत्त ने भी अपने सहोदर की भांति उन्हें और उनके संगियों का अपने घर में खूब आदर-सत्कार किया। वहां चण्ड-शासन ने समुद्र की जाह्नवी-सी, नयनों को आनन्द देने वाली समुद्रदत्त की पत्नी

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