Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१९५ दिक कुमारियां आईं और जातक के जन्म-कृत्य सम्पन्न किए। सौधर्म कल्प से इन्द्र वहां आए और तीर्थंकर एवं तीर्थंकर-माता को नमस्कार कर प्रभ को आकाश-पथ से मेरुशिखर पर ले गए। उन्हें गोद में लेकर वे अति पाण्डकवला शिला पर रखे सिंहासन पर बैठ गए।
(श्लोक २६-३२) फिर तीर्थादि से लाए जल से अच्युतेन्द्रादि वेसठ इन्द्रों ने यथा समय उनका स्नानाभिषेक किया। मानो उनका भार वहन करने में अक्षम हो इस प्रकार शक ने महाबली प्रभु को ईशानेन्द्र की गोद में बैठाकर स्फटिक निर्मित विपुलायतन वृषभों के शृग से निर्गत जल से उन्हें स्नान करवाया। तदुपरान्त देवदूष्य वस्त्र से उनकी देह पौंछकर देह पर चन्दन-लेपन, पूजा आदि कर इस प्रकार स्तुति की :
(श्लोक ३३-३६) _ 'जो आपके चरणों में गिरकर धुलिलिप्त होता है उसके लिए गो-शीर्ष चन्दन से चचित होना कुछ भी कठिन नहीं है। भक्ति-भाव से जो आपके मस्तक पर एक फूल भी चढ़ाता है वह सर्वदा छत्रयुक्त होता है। जो आपकी देह पर एक बार भी अंगराग लेपन करता है वह निश्चय ही देवदूष्य वस्त्र धारण करता है। एक बार भी जो आपके गले में पुष्पमाला अर्पित करता है उसके गले में देवियों की लता-सी बाहुएँ वेष्टित होती हैं। एक बार भी जो आपका निर्मल गुणगान करता है. उसका नाम देवियों द्वारा कीर्तित होता है। आपके सम्मुख जो एक बार भी भक्ति भरे ललित पदक्षेप से नत्य करता है उसके लिए ऐरावत की पीठ पर चढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है। दिन और रात्रि जो आपके दिव्य स्वरूप का ध्यान करता है, हे प्रभु ! वह आपके स्वरूप को प्राप्त कर अन्य के लिए ध्येय हो जाता है। आपकी कृपा से मुझे आपका स्नानाभिषेक, अंगरागलेपन, अलंकारों से आपको सज्जित करने का अधिकार सर्वदा प्राप्त हो।'
(श्लोक ३७-४४) इस प्रकार स्तुति कर शक ने तीर्थंकर भगवान् को ले जाकर देवी सूयशा के पास सुला दिया। तदुपरान्त नन्दीश्वर द्वीप में शाश्वत जिनेश्वरों के सन्मुख अष्टाह्निका महोत्सव कर शक एवं अन्य इन्द्र अपने-अपने निवास स्थान को लौट गए। (श्लोक ४५-४६)
जब यह पुत्र गर्भ में था तब महाराज सिंहसेन ने शत्रु की