Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कामी सुन्दरी स्त्री-सी लगती। यहां के अन्तःपुरों के प्रवेश और निर्गमन-द्वार प्रशस्त थे, सन्धियां दृढ़ थीं कुट्टिमतल प्रेक्षणीय और क्रीड़ा के लिए विशद भूमियुक्त था। अन्त पुर का ऊपरी भाग स्वर्ण जालयुक्त होने से लगता था मानो अन्तःपुरों ने गह-लक्ष्मी की मुकुटमाला को धारण कर रखा है। नगरी के अर्हत मन्दिरों में निवेदित पुष्पों का सौरभ वायु में प्रवाहित होकर नगर-जनों के सन्ताप-हरण में अमृत-तुल्य था।
(श्लोक १२-१६) यहां के राजा सिंह-तुल्य बलशाली नरसिंह सिंहसेन थे। भक्तिवशतः जिस प्रकार देवों की सेवा की जाती है उसी प्रकार राजन्य अपने कल्याण के लिए इनकी सेवा करते । सद्गुणियों में अग्रगण्य वे राजा अपने विभिन्न निर्मल सदगुणों से उसी प्रकार सबको प्रमुदित करते जैसे चन्द्र अपनी निर्मल कौमुदी से पृथ्वी को आनन्दित करता है। योग्य की भी योग्यता को वहन करने वाले उन्होंने अर्थधर्म-काम को इस प्रकार धारण कर रखा था मानो वे सब उनकी सेवा में उपस्थित हैं।
(श्लोक १७-२०) उनकी पत्नी का नाम था सुयशा । वह धर्म के निवास रूप और चारित्र रूपी यश का आधार थी। मन्दाकिनी जिस प्रकार त्रिलोक को पवित्र करती है उसी प्रकार उसने मातृकुल, पितृकुल, श्वसुरकुल रूप त्रिलोक को पवित्र कर दिया था। चन्द्र उसकी मुखाकृति धारण करता, कमल उसके नयनों का अनुज था। शंख उसकी भुजाओं का सखा था। कलश पयोधर का सहोदर था। गुफा नाभि के पुत्र-तुल्य था, नदी सैकत नितम्बों की अनुकृति और कदली-वृक्ष उसकी जंघाओं के अनुज थे एवं कमल पदतल के । वस्तुतः उसकी सुन्दर देह का कोई भी अंश ऐसा नहीं था जो अतुलनीय नहीं हो।
(श्लोक २१-२५) प्राणत नामक स्वर्ग में पद्मरथ के जीव ने बड़े आनन्द से वहां का सर्वोत्तम आयुष्य पूर्ण किया। श्रावण कृष्णा सप्तमी को चन्द्र जब रेवती नक्षत्र में था वह वहां से च्यवकर रानी सुयशा के गर्भ में प्रविष्ट हआ। सुख-शय्या में सोई रानी ने रात्रि के शेष याम में अर्हत-जन्म सूचक हस्ती आदि चौदह महास्वप्न देखे । बैशाख शुक्ला त्रयोदशी को चन्द्र जब पुष्प नक्षत्र में था रानी ने स्वर्ण वर्ण श्येन लक्षण युक्त एक पुत्र को जन्म दिया। रूचकादि पर्वतों से छप्पन