Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ने श्रावकत्व ग्रहण किया। दिन के प्रथम याम तक प्रभु ने देशना दी। तदुपरान्त इसी अनुरूप भाव से प्रथम गणधर मन्दार ने देशना दी। द्वितीय याम शेष होने पर उन्होंने अपनी देशना समाप्त की। इन्द्र, वासुदेव, बलदेव आदि सभी स्व-स्व निवास को लौट गए।
(श्लोक २१४-२१६) विमल स्वामी ने साधारण मनुष्यों के कल्याण के लिए नगर, ग्राम, खान, बन्दरगाहों आदि विभिन्न स्थानों पर प्रव्रजन किया।
(श्लोक २१७) भगवान् विमलनाथ के साथ ६८०० साधु, १००८० साध्वियां, ११०० चौदह पूर्वधारी, ४८०० अवधिज्ञानी, ९००० वैक्रिय लब्धिधारी, ३२०० वादी २०८००० श्रावक, ४२४००० श्राविकाएँ थीं। केवल-ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् २ वर्ष कम १५ लाख वर्ष तक प्रभु ने पृथ्वी पर विचरण किया।
(श्लोक २१८-२२३) अपना निर्वाण समय निकट जानकर प्रभु विमलनाथ ५००० साधूओं सहित सम्मेत शिखर पर्वत पर गए और अनशन तप प्रारम्भ कर दिया। एक मास के अनशन के पश्चात् आषाढ़ कृष्णा सप्तमी के दिन चन्द्र जब पुष्प नक्षत्र में था उन पांच हजार साधुओं सहित भगवान् मोक्ष पधार गए। शकादि देवों ने आकर भगवान् और मुनियों का दाह-संस्कार कर निर्वाणोत्सव किया। भगवान् १५ लाख वर्षों तक कुमारावस्था में ३० लाख वर्षों तक राज्याधिपति रूप में और १५ लाख वर्षों तक त्यागी जीवन में रहे। इस प्रकार कुल ६० लाख वर्षों का पूर्ण आयुष्य प्रभु ने भोगा । वासुपूज्य स्वामी के निर्वाणकाल से विमल स्वामी के निर्वाण में ३० सागर का अन्तर था।
(श्लोक २२४-२२८) अपनी शक्ति के अहंकार के कारण विवेक नष्ट हो जाने से स्वयम्भू ने क्या-क्या कुकर्म नहीं किए। ६० लाख वर्षों की परमायु भोगकर स्व-कुकर्मों के कारण वे छठे नरक में जाकर उत्पन्न हुए। स्वयम्भू ९२००० वर्षों तक युवराज रूप में १२००० वर्षों तक शासक रूप में ९०००० वर्ष तक दिग्विजय में एवं ५९७९९० वर्षों तक अर्द्धचक्री रूप में पृथ्वी पर रहे। (श्लोक २२९-२३२)
भाई की मृत्यु से संसार से विरक्त बने बलदेव मुनि चन्द्र के