Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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से प्रवेश कर नियमानुसार चैत्य वृक्ष को तीन प्रदक्षिणा दी। तदुपरान्त तीर्थ को नमस्कार कर तेरहवें धर्म-चक्रवर्ती विमलनाथ भगवान् के पूर्वाभिमुख होकर रत्न-सिंहासन पर उपवेशन किया। साधु-साध्वी, देव-देवी, मानव-मानवी अपने-अपने निर्दिष्ट द्वारों से प्रवेश कर यथास्थान पर जा बैठे। (श्लोक १८२-१८६)
राज अनुचरों ने त्वरित गति से वासुदेव स्वयम्भू को सूचना दी कि प्रभु के समवसरण का आयोजन हुआ है। हर्षित होकर स्वयम्भू ने उन्हें साढ़े बारह करोड़ रौप्य प्रदान किए। स्वयम्भू बलराम भद्र सहित भाग्योदय के कारण समवसरण में प्रविष्ट हुए तीर्थपति को प्रदक्षिणा देकर दोनों शक्र के पीछे जा बैठे । जिनेश्वर भगवान् को पुनः करबद्ध होकर वन्दनकर शक्र वासुदेव और बलराम ने इस प्रकार स्तुति की :
(श्लोक १८७-१९१) 'हे भगवन्, वर्षाकाल की वर्षा से जिस प्रकार पृथ्वी का मैल धूल जाता है उसी प्रकार आज आपके दर्शनों से मनुष्यों की भययन्त्रणा दूर हो गई है। धन्य है आज का यह दिन कि आपके दर्शनों से कर्ममल लिप्त हमारी आत्मा कर्ममल शून्य हो गई है। हमारे ये नेत्र जो आपको देख रहे हैं मानो उन्होंने इस देह का आधिपत्य लाभ किया है और मुहूर्त भर में हमारी आत्मा को पवित्र कर दिया है। भरत क्षेत्र की इस धरती ने आपके चरण-स्पर्श से ही अमङ्गल के विनाशकारत्व को प्राप्त कर लिया है। आपके दर्शनों की तो बात ही क्या है ? आपका केवल ज्ञान रूपी आलोक मिथ्यात्व रूपी उलूकों के लिए सूर्यालोक की भांति निन्दा का कारण है। हे जगत्पति, आपके दर्शन रूपी अमृत को पान कर जगत्जनों के शरीर उच्छवसित होने के कारण उनके कर्मबन्धन छिन्न हुए जा रहे हैं। आपकी चरण-रेणु जो कि विवेक रूपी दर्पण को निर्मल करने में समर्थ है व महोदय रूप वृक्ष के बीज तुल्य है वह हमारी रक्षा करे। हे भगवन्, आपकी वाणी रूप अमृत हम लोगों के लिए जो कि संसार रूपी मरुभूमि में खोए हुए हैं कल्याण का कारण बने।'
___ (श्लोक १९२-१९९) इस भांति स्तुति कर शक्र, वासुदेव व बलराम के चप हो जाने पर प्रभु विमल स्वामी ने यह देशना दी : (श्लोक २००)
अकाम निर्जरा रूप पुण्योदय से जीव स्थावरकाय से त्रसकाय