Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सभागार का निर्माण करवाया। वह सभागृह देखने में चमर और बलि के सभागह-सा सुन्दर बना था। अभिजात वंश की वृद्धा महिलाओं द्वारा निर्देशित होकर दोनों के ही गृहों में मांगलिक गीत होने लगे।
(श्लोक ४७८-४८१) सुरभित चन्दन चर्चित देह लिए त्रिपृष्ठकुमार मानो इन्द्रनील मणि की प्रतिमा हो इस प्रकार हस्तीपृष्ठ पर आरोहित हुए। अनुचर रूप में राजन्य मित्रों द्वारा परिवत्त होकर वे स्वगह से ज्वलनअटी के घर की ओर चले । गहद्वार पर लटकती पुष्प-मालाओं के नीचे सूर्य जैसे पूर्व दिशा में अवस्थित होता है वैसे ही वे प्रदत्त वस्तु ग्रहण के लिए अवस्थित हो गए । अभिजात वर्गीय महिलाओं द्वारा मंगल-गीत गाए जाने पर त्रिपृष्ठकुमार अग्निपात्र भंग कर अनुचरों सहित मातृगृह में गए । वहाँ उन्होंने नैनों को आनन्द देने वाली श्वेत वस्त्र परिहित मूत्तिमती शशिकला-सी स्वयप्रभा को पहली बार देखा। तत्पश्चात् वे दिव्य आसन पर चित्रा और चन्द्र की तरह बैठ गए । शुभ मुहूर्त उपस्थित होने पर शङ्ख ध्वनि के साथ पुरोहित ने उन दोनों के पद्महस्त चक्रवाल की तरह मिला दिए। तदुपरान्त दोनों का दृष्टि-विनिमय हुआ मानो सद्य उद्गत प्रेम को दोनों ने अभिसिंचित किया। स्वयंप्रभा और त्रिपृष्ठ लता और वृक्ष की तरह एक साथ होमगृह को गए। पिप्पलादि काष्ठ प्रज्ज्वलित कर ब्राह्मणों ने होमद्रव्य निक्षेप किए। अग्निशिखा प्रज्वलित होने पर उन्होंने उस पवित्र अग्नि की ब्राह्मणों द्वारा उच्चारित वेद मन्त्रों के साथ परिक्रमा दी।
(श्लोक ४८२-४९२) ___ इस प्रकार स्वयंप्रभा से विवाह कर त्रिपृष्ठकुमार वधू सहित हस्ति पृष्ठ पर आरोहण कर स्वगह को लौट आए। वाद्य-भाण्डों के उच्च शब्द और उसकी प्रतिध्वनि से सूर्याश्वों के भी कान खड़े हो गए।
(श्लोक ४९३.४९४) गुप्तचरों द्वारा अश्वग्रीव को यह घटना ज्ञात हुई। सिंह की हत्या से वह क्रुद्ध तो था ही, इस घटना से वह और भी क्रुद्ध हो उठा। उसने मन ही मन सोचा-मेरे वर्तमान रहते ज्वलनजटी ने स्त्री-रत्न को अन्य हाथों में क्यों सौंप दिया ? यह सत्य है कि सभी रत्न समुद्र के ही होते हैं । उस रत्न पर अधिकार जताकर दाता और ग्रहीता दोनों के पास दूत भेगा। कारण, राज्य सम्बन्धी विषयों