Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१३४] व रूंगा।
(श्लोक ५३८-५४५) ___ कूद्ध और उत्तजित अश्वग्रीव को बुद्धिसागर महामात्य बोले -'आपने पहले सहज ही भरत क्षेत्र के तीन खण्डों को जय कर लिया था। अतः आप यश और ऐश्वर्य के अधिकारी होकर शक्तिमानों में सर्वशक्तिमान प्रतिपन्न हुए हैं। अब मात्र एक सामन्त को परास्त कर क्या ख्याति व ऐश्वर्य प्राप्त करेंगे ? तुच्छ व्यक्ति को परास्त करने से आपके प्रताप में और क्या विशेषता आएगी जो सिंह हस्तियों के कुम्भ को विदीर्ण करता है उसके लिए हिरण की हत्या करना क्या गौरव का कारण बन सकेगा? ईश्वर न करे यदि आप उस तुच्छ व्यक्ति से पराजित हो गए तब तो एक मुहूर्त में ही आपका यश, कीत्ति, गौरव सभी धूलिसात् हो जाएंगे। युद्ध का फलाफल विचित्र है। फिर भय का कारण भी है। चण्डवेग का अपमान
और सिंह की हत्या ने नैमित्तिक के कथन को सत्य प्रमाणित कर दिया है। इस क्षेत्र में प्रभु को छह प्रकार की नीति में सहनशीलता रूप नीति ग्रहण करना ही समुचित है। कारण महाबली हस्ती भी यदि पथ देखे बगैर दौड़ता है तो कर्दम में धंस जाता है। इसके अतिरिक्त वह बालक दुस्साहसिक कार्य करेगा तो पतग की तरह लपकेगा और पल भर में विनष्ट हो जाएगा और आप सहनशीलता से लाभान्वित होंगे। यदि एकदम ही उसे सहन न कर सकें तो सेना को युद्ध का आदेश दें। आपकी सेना को क्या वह प्रतिहत कर सकेगा?'
(श्लोक ५४६-५५४) ___महामात्य के इस सदुपदेश की अश्वग्रीव ने घृणा भरी उपेक्षा की। सूरापान से जैसे बुद्धि विनष्ट हो जाती है। उसी प्रकार क्रोध में मनुष्य की साधारण बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। उसने महामात्य को भीरु, कापुरुष कहकर अपमानित किया और अनुचरों को रणभेरी बजाने का आदेश दिया। भेरी शब्द को सुनकर समस्त सैन्य शीघ्र ही आकर एकत्र हो गई, यहाँ तक कि जो दूर थे वह भी इस प्रकार आ गए मानो समीप ही कहीं खड़े थे। अश्वग्रीव अपने स्नानागार में गया और हंस जैसे निर्मल गंगाजल में स्नान करता है उसी प्रकार कुम्भ के जल से स्नान किया। सूक्ष्म वस्त्रों से देह पोंछ कर दिव्य गन्ध का विलेपन किया। नन्दन वन से लाए गोशीर्ष चन्दन से अपनी देह को चर्चित किया। श्वेत वस्त्र और छुरिका