Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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तीर को अपने तीर से पद्म-पत्र की तरह बीच में ही काट डाला।
(श्लोक ६७१-६७८) तदुपरान्त उन्होंने जो गति में प्रथम था ऐसा एक तीर निक्षेप कर अश्वग्रीव के धनुष को द्विखण्डित कर डाला। इसके बाद तो अश्वग्रीव ने जितनी बार धनुष ग्रहण किया उतनी ही बार त्रिपृष्ठ कुमार ने उसे स्व-तीर से द्विखण्डित करने के साथ-साथ अश्वग्रीव के उत्साह को भी भंग कर डाला।
(श्लोक ६७९-६८०) तदुपरान्त एक तीर त्रिपृष्ठकुमार ने अश्वग्रीव के ध्वज-दण्ड पर फेंका और दूसरा तीर फेंक कर उसके रथ को इस प्रकार विनष्ट कर डाला मानो तिल का पौधा हो । क्रुद्ध अश्वग्रीव ने अन्य रथ पर आरोहण किया, मेघ-वृष्टि की तरह वाण-वृष्टि कर त्रिपृष्ठ की ओर अग्रसर हआ। अश्वग्रीव के तीरों से चारों दिशाएँ ढक जाने के कारण न सारथी, न त्रिपृष्ठकुमार न अन्य कोई, कुछ भी दिखाई पड़ रहा था। तब त्रिपृष्ठकुमार ने अश्वग्रीव की उस तीर वर्षा को सहस्रमाली जैसे स्व-किरणों से अन्धकार को दूर कर देता है उसी प्रकार दूर कर दिया। बलवानों में प्रथम पर्वत की तरह सख्त दीर्घबाहु अश्वग्रीव अपने तीरों की वर्षा को व्यर्थ होते देखकर अत्यन्त क्रोधित हो उठा । अतः तूणीर से विद्युत् की सहोदरा-सी, वज्र की सखा-सी, मृत्यु की जननी-सी, मानो नागराज की जिह्वा हो ऐसी पाषाण सी शक्त एक शक्ति बाहर निकाली । उस शक्ति को स्तम्भ स्थित राधावेध की तरह या घण्टिकायुक्त यम की नर्तकी की तरह वह तीव्र वेग से सिर पर घुमाने लगा। फिर समस्त शक्ति संहतकर उसे त्रिपृष्ठकुमार पर निक्षेप किया। उनका विमान भग्न हो जाएगा इस भय से देवों ने उस शक्ति की राह छोड़ दी । उस शक्ति को अपनी ओर आते देखकर त्रिपृष्ठकुमार ने रथ पर रखी यमदण्ड-सी गदा उठाई और हाथी जैसे सूड से भस्त्रा-यन्त्र को विनष्ट कर देता है उसी प्रकार निकट आती शक्ति पर तुरन्त प्रहार किया। उस प्रहार से वह शक्ति अग्नि स्फुलिंगों की वृष्टि करती हुई जैसे उल्का जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार चूर्णविचूर्ण होकर धरती पर गिर पड़ी। (श्लोक ६८१-६९१)
तब अश्वग्रीव ने ऐरावत के उद्धत दन्तों-सी लौह निर्मित गदा गदाधर त्रिपृष्ठकुमार पर फेंकी। त्रिपृष्ठकुमार ने उस गदा