Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अतः मैं उसे उसके पिता और भ्राता सहित विनष्ट कर दूँगा ।'
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_(श्लोक ११५-१२० ) यह सुनकर एक मन्त्री बोला - 'यह कार्य लगता है उन्होंने अज्ञतावश ही किया है । राजा रुद्र तो दीर्घकाल से आपकी सेवा करते आ रहे हैं अतः क्रुद्ध न हों । यह कार्य निश्चय ही उनका समर्थन प्राप्त नहीं करेगा । वे तो आपकी कृपा के अभिलाषी कौन प्रभु की कोपाग्नि या नदी में कूदना चाहेगा ? अतः भय के मारे वे आपके पास नहीं आ रहे हैं । महाराज, करुणा करिए । मुझे आदेश दीजिए और उन्हें अभय । मैं उनके पास से और अधिक मूल्यवान भेंट लेकर आऊँगा ।'
( श्लोक १२१ - १२४) मेरक ने जब यह बात स्वीकार कर ली तो मन्त्री शीघ्र ही द्वारिका गए और भद्र एवं स्वयम्भू की उपस्थिति में ही रुद्र से बोले- 'अज्ञानवशतः आपके पुत्रों ने यह क्या कर डाला ? प्रभु के तो कुत्ते की भी हत्या नहीं की जाती। वे क्रुद्ध न हो जाएँ अतः उनका सब कुछ लौटा दें । मैं आप पर कोई आक्षेप नहीं आने दूँगा । अज्ञता आपके पुत्रों के दोष को भी ढक देगी ।' ( श्लोक १२५ १२७ )
यह सुनकर स्वयम्भू उनसे बोला- 'महात्मन्, प्रभु भक्ति और अपनी उदार मनोभावना के कारण आप हमारे पिताजी को ऐसा कह रहे हैं; किन्तु सोचकर देखिए, हमने उनसे कितना लिया है ? हम तो समस्त पृथ्वी को ग्रहण करना चाहते हैं । कारण, पृथ्वी वीरभोग्या होती है । धरती पर ऐसा कौन है जो कृतान्त की तरह क्रुद्ध बलराम और मेरे सम्मुखीन हो सकता है ? मैं उनकी हत्या कर भरतार्द्ध पर अधिकार करूँगा । कीड़ों से अन्य राजाओं की हत्या करने से क्या लाभ होगा ? उन्होंने भी बाहुबल से भरतार्द्ध को जय किया है, पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त नहीं किया । इस विधान से ही भरतार्द्ध मेरा होगा । बली पर
भी महाबली होते हैं ।'
( श्लोक १२८ - १३२ )
स्वयम्भू की यह बात सुनकर मन्त्री विस्मित और भयभीत होकर शीघ्रतापूर्वक मेरक के पास लौटा और जो कुछ घटित हुआ वह कह सुनाया । इस स्पर्द्धापूर्ण कथन को सुनकर मदोन्मत्त हाथी की तरह मेरक स्व-सैन्य लेकर युद्ध के लिए अग्रसर हुआ । गुफा से निकलने वाले सिंह की भाँति स्वयम्भू राजा रुद्र और बलराम भी द्वारिका से निकले । प्रजा को उद्विग्न कर भयंकर राहु और