Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
१८४] वर्ष । वे देखने में जितने सुन्दर थे उतने ही बलशाली भी थे। अत्यन्त वैभवशाली उन्होंने वैताढ्य पर्यन्त अर्द्ध भरत पर, अपना अधिकार विस्तृत कर अर्द्धचक्री प्रतिवासुदेव मेरक नाम से विख्यात् हो गए थे। जिस प्रकार वायु-सा शक्तिशाली, सूर्य-सा तेजस्वी कोई नहीं है उसी प्रकार शौर्य में उनका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं था। उनके आदेश को अमान्य करने का साहस किसी में नहीं था मानो वे भाग्य की भांति अमोघ हों बल्कि वे शिखा-बन्धन की तरह रक्षाकवच के रूप में सर्वत्र ग्रहीत होते ।
(श्लोक ८५-९०) भरत क्षेत्र के द्वारका नामक नगर में समुद्र-से गम्भीर रूद्र नामक एक राजा थे। उनकी सुप्रभा और पृथ्वी नामक दो ऐसी पत्नियां थीं मानो श्री और पृथ्वी ही मूर्तिमंत हो गई हों। अपने रूप और शील से वे सबका मन हरण करती थीं। नन्दीसुमित्र का जीव अनुत्तर विमान से च्युत होकर रानी सुप्रभा के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। रात्रि के अन्त में सुख-शय्या पर सोई हुई रानी सुप्रभा ने बलदेव के जन्म की सूचना देने वाले चार महास्वप्न देखे । नौ-मास साढ़े सात दिनों के पश्चात् सुप्रभा ने चन्द्र-से शुभ्रवर्ण वाले एक पुत्र को जन्म दिया। राजा रुद्र ने उसका नाम रखा भद्र। कुल वैभव के साथ वह भी बड़ा होने लगा।
(श्लोक ९१-९६) धनमित्र का जीव अच्युत देवलोक से च्यव कर सरोवर में जैसे कमल उत्पन्न होता है वैसे ही रानी पृथ्वी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। रात्रि के शेष भाग में सुख-शय्याशायीन रानी ने वासुदेव के जन्म सूचक सात महा-स्वप्नों को अपने मुख में प्रविष्ट होते देखा। समय पूर्ण होने पर उन्होंने कृष्णवर्ण एक पुत्र को जन्म दिया जिसका शरीर वैद्वर्य पर्वत की तरह चमकीला था। राजा रुद्र ने आनन्दित होकर पुत्र-जन्मोत्सव के समय उसका नाम रखा स्वयम्भू । पांच समितियों के पालन से जैसे तपस्वी की निर्मल तपस्या सफल होती है उसी प्रकार पांच धात्रियों द्वारा सर्वदा पालित होते हुए स्वयम्भू बड़े होने लगे।
(श्लोक ९७-१०१) भद्र और स्वयम्भू गंगा और यमुना की तरह एक गोरा एक कृष्णवर्ण प्रेम के सूत्र में एक साथ गूंथे थे। उनके पदाघात को अन्य राजकुमार सहन नहीं कर पाते थे कारण उनके पदाघात से मुद्गर के आघात की तरह पर्वत भी चूर्ण हो जाता था। नील और पीत