Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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नामक शिविका पर चढ़े । देव, असुर और नरेन्द्रों से परिवृत्त होकर वे पालकी द्वारा सहस्राम्रवन उद्यान की ओर अग्रसर हुए ।
( श्लोक ५३ - ५८ ) उस उद्यान के लता - मण्डप शीत भय से भयभीता उद्यानपालिकाओं द्वारा मानो घर हो इस भांति आश्रित हुए थे । आम्र, वकुल आदि वृक्षों के शिखर पर बर्फ गिरने के कारण मानो वे भविष्य में सौन्दर्य - लाभ के लिए तपस्या निरत हों ऐसे लग रहे थे । कुँए का जल, बड़ की छाया नगरागत मिथुनों की शीत - जर्जरता को जैसे कुछ दूर कर रही थी । शीत- कातर वानरों द्वारा एकत्रित गुजाफल देखकर नगर की नारियों के मुख पर जो हास्य विकसित हो रहा था उसे देखकर लगा मानो चन्द्र- किरण प्रसारित हो रही हैं । वह उद्यान लावली और यूथि के पुष्प गुच्छों के कारण मानो हँस रहा हो ऐसा लग रहा था । ऐसे उद्यान में शिविका से उतरकर प्रभु ने प्रवेश किया। तत्पश्चात् अलंकार त्याग और देवदूष्य वस्त्र धारण कर माघ शुक्ला चतुर्थी को अपराह्न में चन्द्र जब उनके जन्मनक्षत्र में अवस्थित था तब उन्होंने हजार राजाओं सहित दो दिनों के उपवास के पश्चात् श्रमण दीक्षा ग्रहण की । ( श्लोक ५९-६५)
दूसरे दिन सुबह धान्यकूट नगर में राजा जय के घर खीरान्न ग्रहण कर विमलनाथ स्वामी ने पारणा किया । देवों ने रत्न वर्षा आदि पांच दिव्य प्रकट किए और राजा जय ने जहां प्रभु खड़े थे वहां रत्न वेदी निर्मित करवाई। फिर त्रिलोकपति वहां से छद्मस्थ रूप में खान नगर आदि विभिन्न स्थानों में परिव्रजन करने लगे । ( श्लोक ६६-६८ ) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में आनन्दकरी नामक नगरी में राजा नन्दी सुमित्र राज्य कर थे । यद्यपि उनके वहिर्चक्षु थे फिर भी वे सब कुछ विवेकदृष्टि से ही देखते थे । यद्यपि उनकी विशाल सेना थी फिर भी वे संगी रूप में तलवार को ही साथ रखते थे । जन्म से ही संसार से विरक्त और सब कुछ क्षणभंगुर समझ कर केवल उत्तराधिकार की रक्षा के लिए ही वे राज्य शासन करते थे 1
( श्लोक ६९-७१ ) मन से तो सब कुछ त्याग किया हुआ ही था; किन्तु एक दिन बाह्य रूप में भी राज्य परित्याग कर आचार्य सुव्रत से उन्होंने मुनि