Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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समुद्र जो अनतिक्रमणीय था वह अब आपके चरण-शरण से अतिक्रमणीय हो जाएगा । आपकी देशनारूपी सीढ़ी पर चढ़कर भव्य जीव एक लम्बे समय के पश्चात् अब मोक्ष को प्राप्त करेंगे । प्रखर तपन ताप से तपते पथिकों के लिए मेघ की तरह, हम अनाथों के लिए दीर्घकाल के बाद आप नाथ रूप में आविर्भूत हुए हैं ।'
( श्लोक ३७ - ४४)
तेरहवें तीर्थंकर की इस भाँति स्तुति कर इन्द्र जिस प्रकार जातक को लाए थे उसी प्रकार लौट कर जातक को उनकी मां श्यामा देवी के पास सुला दिया । शक्र वहां से और अन्य इन्द्र मेरु पर्वत से सफल समुद्र यात्रा के पश्चात् वणिक जिस प्रकार स्व-घर को लौट जाते हैं वैसे ही अपने-अपने निवास को लौट गए ।
(श्लोक ४५-४६ ) राजा कीर्तिवर्मा ने भी बड़े धूमधाम से जन्मोत्सव मना कर सबको आनन्दित किया । जब प्रभु गर्भ में थे उनकी मां विमल बन गई थी अतः उन्होंने अपने पुत्र का नाम विमल रखा । त्रिलोकपति धात्री-रूपी देवांगनाओं द्वारा लालित होकर एवं सखारूपी देवकुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए बड़े होने लगे । ( श्लोक ४७-४९ ) साठ धनुष दीर्घ और १००८ सुलक्षणों से युक्त प्रभु क्रमशः यौवन को प्राप्त हुए । संसार से विरक्त होने पर भी पिता के आग्रह से भोग कर्मों को निरसन करने वाली औषधि के रूप में उन्होंने राजकन्याओं का पाणिग्रहण किया । ( श्लोक ५०-५१ ) १५ लाख वर्ष युवराज रूप में व्यतीत कर पिता के आदेश से उन्होंने राज्यभार ग्रहण किया कारण पिता का आदेश आर्हतों के लिए भी मान्य होता है ।
( श्लोक ५२ )
राज्य शासन के तीस लाख वर्ष व्यतीत हो जाने पर संसारसागर को पार करने की नौका रूपी दीक्षा उन्हें स्मरण हो आई । सारस्वत आदि लौकान्तिक देवों ने प्रभु के निकट आकर उनसे तीर्थ स्थापना करने को कहा । एक वर्ष तक उन्होंने प्रार्थियों की इच्छानुसार जृम्भक देवों द्वारा लाया धन कल्पतरु की तरह दान किया । एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर इन्द्रों ने प्रभु के विमल मन की तरह विमल जल से विमलनाथ का दीक्षापूर्व का स्नानाभिषेक सम्पन्न किया । प्रभु दिव्य गन्ध वस्त्र और अलंकार धारण कर देवदत्त